स्टील की गोलियां मिलने पर जम्मू कश्मीर में सुरक्षाबलों की बुलेट प्रूफ व्यवस्था मजबूत की गई

स्टील की गोलियां मिलने पर जम्मू कश्मीर में सुरक्षाबलों की बुलेट प्रूफ व्यवस्था मजबूत की गई

स्टील की गोलियां मिलने पर जम्मू कश्मीर में सुरक्षाबलों की बुलेट प्रूफ व्यवस्था मजबूत की गई
Modified Date: November 29, 2022 / 08:26 pm IST
Published Date: March 21, 2021 11:28 am IST

(सुमीर कौल)

श्रीनगर/नयी दिल्ली, 21 मार्च (भाषा) जम्मू कश्मीर में सुरक्षाबलों ने अपने वाहनों एवं बंकरों पर गोलियों को बेअसर करने के लिए बुलेट-प्रूफ शील्ड को मजबूत बनाया है । दरअसल हाल में दक्षिण कश्मीर में एक मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों के पास से स्टील की ऐसी गोलियां मिली हैं जो सामान्य सुरक्षात्मक आवरण को छलनी कर सकती हैं।

कुछ दिन पहले शोपियां में मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद का स्थानीय कमांडर विलायत हुसैन उर्फ सज्जाद अफगानी मारा गया था। तब सेना ने स्टील वाली 36 गोलियां बरामद की थीं।

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इस बरामदगी से सुरक्षा प्रतिष्ठानों के कान खड़े हो गये क्योंकि ये गोलियां सामान्य सुरक्षा आवरण का उपयोंग करने वाले सुरक्षाकर्मियों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं।

अधिकारियों ने बताया कि खासकर दक्षिण कश्मीर में तैनात वाहनों एवं आतंकवाद-निरोधक अभियानों पर जाने वाले कर्मियों को ऐसी शील्ड से लैस किया गया जो उन्हें इन गोलियों से बचाव के लिए अतिरिक्त सतहों की सुरक्षा दे सकती हैं।

अधिकारियों ने बताया कि सीमा पर ए के श्रृंखला की राइफलों में इस्तेमाल होने वाले हथियारों में स्टील के केंद्र वाली ऐसी गोलियों को बेअसर करने के लिए चीनी प्रौद्योगिकी की मदद से बदलाव किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि इन गोलियों को कठोर इस्पात या टंगस्टन कार्बाइन से बनाया गया है और उन्हें आर्मर पीयर्सिंग कहा जाता है।

स्टील कोर वाली इन गोलियों के इस्तेमाल की पहली घटना 2017 में नये वर्ष पर सामने आयी थी जब जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के लेथपुरा में सीआरपीएफ शिविर पर आत्मघाती हमला किया था।

इस हमले में पांच अर्धसैन्य कर्मियों की जान चली गयी थी। उनमें से एक की मौत सेना की बुलेटप्रुफ शील्ड के पहनने के बावजूद हुई थी।

अधिकारियों ने बताया कि आमतौर पर आतंकवादी जो गोलियां इस्तेमाल करते हैं उनमें केंद्र में सीसा और फिर उस पर हल्का स्टील होता है तथा ये गोलियां बुलेट प्रूफ शील्ड को नहीं छेद पातीं। लेकिन 31 दिसंबर, 2017 की घटना के बाद और विस्तृत विश्लेषण के बाद बलों को बचाव के लिए अपना तौर-तरीका बदलना पड़ा।

भाषा राजकुमार मनीषा

मनीषा


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