केंद्र ने न्यायालय में औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की अपनी शक्ति का दावा किया

केंद्र ने न्यायालय में औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की अपनी शक्ति का दावा किया

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  • Publish Date - April 16, 2024 / 08:58 PM IST,
    Updated On - April 16, 2024 / 08:58 PM IST

नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने के अपने अधिकार पर जोर देते हुए केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि संविधान निर्माताओं का इरादा औद्योगिक (विकास और विनियमन) अधिनियम 1951 के माध्यम से केंद्र को ‘सार्वजनिक हित’ में किसी भी उद्योग पर पूर्ण नियंत्रण देने का था।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्तियों-हृषिकेश रॉय, अभय एस ओका, बी वी नागरत्ना, जे बी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्ज्वल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ से कहा कि अधिनियम के अनुसार कई महत्वपूर्ण उद्योगों के विकास और विनियमन तथा पूरे देश पर प्रभाव डालने वाली गतिविधियों को केंद्र के नियंत्रण में लाना आवश्यक है।

कोविड-19 का उदाहरण देते हुए मेहता ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय हित में अपनी नियामक शक्ति का उपयोग कर सकती है, जैसा कि उसने सैनिटाइजर के निर्माण के लिए अधिसूचित मूल्य पर इथेनॉल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के आदेश जारी करके किया था।

उन्होंने कहा, ‘मान लीजिए कि केंद्र सरकार को कोविड के दौरान आवश्यकता हो कि औद्योगिक अल्कोहल की पूरी मात्रा का उपयोग सैनिटाइजर के निर्माण के लिए किया जाना चाहिए तो सरकार अपनी नियामक शक्ति का उपयोग कर सकती है।’

नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन, विनिर्माण, आपूर्ति और विनियमन के संबंध में केंद्र और राज्यों की शक्तियों के अधिव्याप्त होने के मुद्दे की पड़ताल कर रही है।

सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा राज्यों के खिलाफ फैसला सुनाए जाने के बाद पीठ के समक्ष कई याचिकाएं आईं।

वर्ष 1997 में सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा यह निर्णय दिए जाने के बाद कि केंद्र के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति होगी, साल 2010 में यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया था।

सुनवाई बेनतीजा रही और 16 अप्रैल को फिर से शुरू होगी।

भाषा नेत्रपाल माधव

माधव