मध्यस्थता को व्यापक प्रथा बनाने के लिए मानसिकता में बदलाव जरूरी : न्यामूर्ति अमानुल्ला
मध्यस्थता को व्यापक प्रथा बनाने के लिए मानसिकता में बदलाव जरूरी : न्यामूर्ति अमानुल्ला
पणजी, 27 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ए अमानुल्ला ने शनिवार को कहा कि देश में मध्यस्थता को व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली प्रथा बनाने के लिए मानसिकता में बदलाव लाना और जमीनी स्तर पर जनता के बीच विश्वास पैदा करना जरूरी है।
न्यायमूर्ति अमानुल्ला बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) और बीसीआई ट्रस्ट की ओर से पणजी में इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईयूएलईआर) में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि लोग मध्यस्थता को अक्सर पंचाट के साथ जोड़ते हैं, लेकिन दोनों मूल रूप से अलग हैं।
न्यायाधीश ने कहा कि एक मध्यस्थ पंचाट की मानसिकता के साथ काम नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा, “मध्यस्थता की प्रक्रिया से किसी विवाद का सफल समाधान मध्यस्थ को अपार संतुष्टि प्रदान करता है। लोग मध्यस्थता के माध्यम से विवादों का समाधान चाहते हैं, क्योंकि कोई भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पीढ़ियों तक मुकदमेबाजी या अदालती कार्यवाही के फेर में नहीं उलझना चाहता।”
न्यायमूर्ति अमानुल्ला ने कहा कि मध्यस्थता और सामान्य न्यायिक प्रणाली को एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप से बचना चाहिए और दोनों को समानांतर रूप से काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर यह विश्वास पैदा करना जरूरी है कि मध्यस्थता न केवल संबंधित पक्षों के हितों की, बल्कि राष्ट्रीय हित की भी पूर्ति करती है।
उन्होंने ने आईआईयूएलईआर में मध्यस्थता पर संगोष्ठी के आयोजन जैसी पहलों की सराहना की। उन्होंने कहा कि पैनल चर्चाओं, नीतिगत गोलमेज बैठकों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और तकनीकी सत्रों के जरिये 11 घंटे से अधिक की सार्थक विचार-विमर्श प्रक्रिया संपन्न हुई।
न्यायाधीश ने कहा कि भले ही यह आसान नहीं है, लेकिन मध्यस्थता का दायरा बढ़ाने का प्रयास करने के लिए आदर्श परिस्थितियों का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए।
समापन सत्र में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ए कोटिश्वर सिंह ने कहा कि भारत में अदालतों की स्थापना, कानूनों के कार्यान्वयन और यहां तक कि ‘मध्यस्थता’ शब्द के कानूनी शब्दावली में शामिल होने से बहुत पहले से ही बातचीत, विवेक और समुदाय के माध्यम से विवादों का समाधान किया जाता था।
उन्होंने कहा कि समापत सत्र की यह घड़ी इस बात की पुष्टि करती है कि भारत में न्याय हमेशा तभी सबसे मजबूत होता है, जब वह किसी को विजेता या हारने वाला घोषित किए बिना सुलह की तलाश करता है।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “मध्यस्थता कोई नयी अवधारणा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा ज्ञान है, जिसे पुनः प्राप्त किया जा रहा है।”
संगोष्ठी की रिपोर्ट पेश करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि इसने मध्यस्थता के मूल पहलुओं को प्रभावी ढंग से संबोधित किया और मौजूदा परिदृश्य में इसके बढ़ते महत्व पर एक स्पष्ट राष्ट्रीय संदेश दिया।
संगोष्ठी में प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और शीर्ष अदालत व उच्च न्यायालयों के कई न्यायाधीश शामिल हुए।
भाषा पारुल रंजन
रंजन

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