स्तन कैंसर का जोखिम बढ़ाता है मांसाहार का सेवन : अध्ययन

स्तन कैंसर का जोखिम बढ़ाता है मांसाहार का सेवन : अध्ययन

स्तन कैंसर का जोखिम बढ़ाता है मांसाहार का सेवन : अध्ययन
Modified Date: December 24, 2025 / 07:49 pm IST
Published Date: December 24, 2025 7:49 pm IST

नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) भारतीय आयुर्विज्ञान अध्ययन परिषद (आईसीएमआर) के नये अध्ययन में मांसाहार के सेवन, नींद की कमी और मोटापे का स्तन कैंसर के जोखिम के साथ सीधा संबंध पाया गया है।

अध्ययन में कहा गया है कि स्तन कैंसर के मामले हर साल 5.6 प्रतिशत की दर से बढ़ सकते हैं, जिससे नये मरीजों की संख्या में प्रतिवर्ष औसतन 50 हजार की वृद्धि हो सकती है।

आईसीएमआर के बेंगलुरु स्थित राष्ट्रीय रोग सूचना और अध्ययन केंद्र के अध्ययन में कहा गया कि है प्रजनन अवधि, हार्मोन का स्तर और पारिवारिक इतिहास भी भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर का जोखिम निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है।

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साल 2022 में दुनिया भर में अनुमानित 23 लाख महिलाएं स्तन कैंसर से पीड़ित पाई गईं, जिनमें से लगभग 6,70,000 की मौत हो गई।

भारत में स्तन कैंसर महिलाओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख कैंसर में से एक है। 2022 में देश में अनुमानित 2,21,757 मामले सामने आए थे। इस हिसाब से महिलाओं में होने वाले कैंसर में से लगभग 22.8 प्रतिशत मामले स्तन कैंसर के थे।

यह अध्ययन भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर के जोखिम कारकों का मूल्यांकन करने के लिए 22 दिसंबर 2024 तक प्रकाशित हुए भारतीय अध्ययनों के विश्लेषण पर आधारित है।

प्रजनन और हार्मोन संबंधी कारकों का भी अध्ययन किया गया, जिसमें विवाह की उम्र, गर्भावस्था, गर्भपात का इतिहास, पहले और आखिरी बच्चे के जन्म के दौरान उम्र, स्तनपान, गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल, प्रसव की संख्या तथा बच्चों की संख्या का विश्लेषण शामिल है।

अध्ययन में कहा गया है कि जीवनशैली से जुड़े कारक स्तन कैंसर का जोखिम निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मांसाहार को बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया है, इसका कारण संभवतः संतृप्त वसा और प्रसंस्कृत मांस का अधिक सेवन हो सकता है, जिन्हें ‘एस्ट्रोजन’ का उत्पादन बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाया गया है।

इसके अलावा दूसरे जोखिमों में नींद पूरी न होना और मोटापा शामिल है। अध्ययन में कहा गया है कि स्तन कैंसर के मामले हर साल 5.6 प्रतिशत की दर से बढ़ सकते हैं, जिसकी वजह से नये मरीजों की संख्या में प्रतिवर्ष औसतन 50 हजार की वृद्धि हो सकती है।

भाषा

जोहेब पारुल

पारुल


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