Contract Employees Regularization Update: संविदा कर्मचारियों को हाईकोर्ट से फिर लगा तगड़ा झटका, नहीं होगा नियमितीकरण, जानें वजह
संविदा कर्मचारियों को हाईकोर्ट से फिर लगा तगड़ा झटका, नहीं होगा नियमितीकरण, Contract Employees Regularization Update: High Court asked not to make Samvida Karamchari permanent
Contract Employees Latest News: 45 प्रतिशत संविदा कर्मचारियों की छटनी, 15 अगस्त से पहले हजारों कर्मचारी हो गए बेरोजगार / Image source: File
बेंगलुरु: Contract Employees Regularization Update नियमितीकरण की आस में बैठे संविदा कर्मचारी दावे और वादे के भंवर में फंस गए हैं। चुनाव के समय और इससे इतर भी नेता उन्हें परमानेंट करने के लिए कई तरह के वादे करते रहे हैं, लेकिन उसे जमीन पर उतारने में कई साल लग जाते हैं। सरकार के अलावा कोर्ट से भी कर्मचारियों को झटका लग जाता है। ऐसा ही एक मामला एक फिर सामने आया है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में कार्यरत संविदा कर्मचारियों को बड़ा झटका दिया और नियमित करने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों का नियमितीकरण संभव ही नहीं है।
Read More : MP News: निर्माण कार्यों में अनियमितता को लेकर भड़के राज्यपाल पटेल, अधिकारियों को लगाई फटकार
Contract Employees Regularization Update दरअसल, कर्नाटक के एक सरकारी प्रिंटिग प्रेस में साल 2000 से कर्मचारियों का 27 संगठन कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर कार्यरत था। सभी कर्मचारियों की नियुक्ति आउटसोर्स के माध्यम से हुई थी। वहीं, साल 2016 में तुमकुर में प्रिंटिंग प्रेस को बंद कर दिया गया। साथ ही सरकारी प्रिंटिंग प्रेस के सभी दायित्व और संपत्ति पीन्या में प्रिंटिंग प्रेस में नियोजित कर दिया। तुमकुर प्रिंटिंग प्रेस जब बंद हुआ था तो यहां 96 कर्मचारी कार्यरत थे, जिनमें से 50 को समाहित कर लिया गया और अन्य कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी गई। कर्मचारियों ने 2000 से 2010 की अवधि के लिए तथा फिर 2016-17 से 2022-23 तक सेवा प्रदान की। कर्मचारियों ने नौकरी से निकाले जाने और संस्था के बंद होने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सुनवाई करते हुए राज्य को उनकी दीर्घकालिक सेवा के आधार पर उनके नियमितीकरण पर विचार करने का निर्देश दिया। इसके बाद कर्मचारियों ने रिट याचिका दायर की।
सरकार और संविदा कर्मचारियों के तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि कर्मचारियों को ठेकेदारों के माध्यम से नियुक्त किया गया और वे सीधे सरकारी प्रिंटिंग प्रेस द्वारा नियोजित नहीं थे। न्यायालय ने कहा कि सेवाओं की आउटसोर्सिंग सरकार द्वारा नीतिगत निर्णय था, जिसका उद्देश्य दक्षता में सुधार करना और लागत कम करना था। कर्मचारियों का रोजगार इन अनुबंधों पर आधारित था, जिसका उद्देश्य स्थायी रोजगार संबंध बनाना नहीं था। यह पाया गया कि यह साबित करने के लिए कोई आधिकारिक रिकॉर्ड या दस्तावेज नहीं थे कि कर्मचारी सीधे सरकारी प्रिंटिंग प्रेस द्वारा नियोजित थे। न्यायालय ने माना कि भर्ती प्रक्रियाओं का पालन किए बिना आकस्मिक या अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करना स्थापित कानूनी सिद्धांतों का उल्लंघन होगा। न्यायालय ने सचिव, कर्नाटक राज्य बनाम उमादेवी और अन्य के मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें सार्वजनिक रोजगार के लिए उचित भर्ती प्रक्रियाओं के महत्व पर जोर दिया गया।
न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट के 13.06.2023 के आदेश में कर्मचारियों के नियमितीकरण पर विचार करने का निर्देश दिया गया, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया। सरकार ने कर्मचारियों के दावों पर विचार करके और बाद में कानूनी और तथ्यात्मक परिस्थितियों के आधार पर उन्हें खारिज करके आदेश का अनुपालन किया। न्यायालय ने माना कि कर्मचारियों को नियमित करने से समान आउटसोर्सिंग अनुबंधों के तहत लगे अन्य कर्मचारियों के साथ असमानता और अन्याय पैदा होगा। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि कर्मचारी अपने रोजगार के नियमितीकरण के हकदार नहीं थे। हालांकि न्यायालय ने बहाली, नियमितीकरण के बदले मौद्रिक मुआवजा देने के सिद्धांत को अपनाया और सभी 27 कर्मचारियों को 5,00,000 – 6,25,000 रुपए की सीमा में मौद्रिक मुआवजे के रूप में ही राहत प्रदान की, जिसकी गणना 2000 से 2010 की अवधि के लिए दी गई सेवा के प्रत्येक वर्ष के लिए 25,000/- रुपए की राशि और 2016-17 से 2022-23 तक दी गई सेवा के प्रत्येक वर्ष के लिए 50,000/- रुपए की राशि प्रदान करके की गई।

Facebook



