नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने एक असाधारण फैसला सुनाते हुए लगभग दस साल पहले 12 वर्षीय एक लड़की के साथ बलात्कार करने के लिए एक व्यक्ति को दोषी ठहराया है जबकि इस मामले में पीड़िता अपने बयान से मुकर गई थी।
अदालत ने कहा कि डीएनए और एफएसएल नतीजों जैसे ‘‘निर्णायक सबूत’’ के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जाता है।
आमतौर पर यौन उत्पीड़न के मामलों में बलात्कार पीड़िता की गवाही को मुख्य सबूत माना जाता है और यदि पीड़िता आरोपी को ‘क्लीन चिट’ दे देती है तो उसे संदेह का लाभ मिल जाता है और वह छूट जाता है।
अक्टूबर 2014 में नाबालिग लड़की से हुए बलात्कार के इस मामले की सुनवाई कर रहे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमित सहरावत ने कहा, ‘‘पीड़िता हालांकि इस तथ्य से मुकर गई कि आरोपी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाये थे, लेकिन डीएनए और फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) के नतीजों से सच्चाई सामने आ गई है, जो कि एक निर्णायक सबूत है।’’
अदालत ने सोमवार को पारित अपने आदेश में कहा कि पीड़िता ने चिकित्सक, पुलिस और मजिस्ट्रेट को दिए अपने बयानों में कहा था कि आरोपी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे।
अदालत के समक्ष अपने चौथे बयान में हालांकि वह मुकर गई और अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया।
न्यायाधीश ने कहा कि अदालत का कर्तव्य सच्चाई का पता लगाना है और आरोपी व्यक्तियों को न्यायपालिका का मजाक उड़ाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
इसने कहा कि डीएनए और एफएसएल रिपोर्ट के आधार पर, निर्णायक रूप से यह कहा जा सकता है कि आरोपी ने पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए थे।
अदालत ने कहा, ‘‘गवाह झूठ बोल सकते हैं लेकिन वैज्ञानिक साक्ष्य जो निर्णायक प्रकृति के होते हैं और इन्हें झूठा नहीं ठहराया जा सकता और इसलिए इन्हें खारिज नहीं किया जा सकता है।’’
सजा पर दलीलें बाद में सुनी जाएंगी।
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव
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