न्यायालय का यौनकर्मियों को पहचान के सबूत के बिना ही शुष्क राशन उपलब्ध कराने का राज्यों को निर्देश | Court directs states to provide dry ration to sex workers without proof of identity

न्यायालय का यौनकर्मियों को पहचान के सबूत के बिना ही शुष्क राशन उपलब्ध कराने का राज्यों को निर्देश

न्यायालय का यौनकर्मियों को पहचान के सबूत के बिना ही शुष्क राशन उपलब्ध कराने का राज्यों को निर्देश

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:34 PM IST, Published Date : September 29, 2020/10:07 am IST

नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन और विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा चिन्हित यौनकर्मियों को पहचान का सबूत पेश करने के लिये बाध्य किये बगैर ही शुष्क राशन उपलब्ध कराएं।

शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही सभी राज्यों को चार सप्ताह के भीतर इस आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। इन रिपोर्ट में यह विवरण होना चाहिए कि कितनी यौनकर्मियों को इस दौरान राशन दिया गया।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि कोविड-19 महामारी की अवधि के दौरान यौनकर्मियों को वित्तीय सहायता दिये जाने के सवाल पर बाद में विचार किया जायेगा।

पीठ ने कहा कि राज्य यौनकर्मियों को शुष्क अनाज उपलब्ध करायेंगे और नाको तथा जिला और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता से उनकी पहचान की जायेगी।

शीर्ष अदालत गैर सरकारी संगठन दरबार महिला समन्वय समिति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की वजह से यौनकर्मियों की स्थिति बहुत ही खराब हो गयी है। याचिका में देश में नौ लाख से भी ज्यादा यौनकर्मियों को राशन कार्ड और दूसरी सुविधायें उपलब्ध कराने का भी अनुरोध किया गया है।

पीठ ने सभी राज्यों से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने के लिये भी कहा कि इन यौनकर्मियों को किस तरह से राशन कार्ड और दूसरी सुविधायें मुहैया करायी जा सकती हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य को जानते हैं कि राज्य मदद के लिये आगे आ रहे हैं लेकिन समस्या यह है कि यौनकर्मियों के पास कोई पहचान का सबूत नहीं है। इसलिए सभी को राशन दिया जाना चाहिए। राज्यों को हमें बताना चाहिए कि इस पर अमल कैसे किया जाये।

केन्द्र की ओर से पेश वकील ने कहा कि अगर राज्य यौनकर्मियों को सूखा अनाज देते हैं तो उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं है।

शीर्ष अदालत ने पिछले सप्ताह यौनकर्मियों की समस्याओं का संज्ञान लेते हुये कहा था कि जनहित याचिका में उठाये गये मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।

गैर सरकारी संगठन का कहना है कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना में 1.2 लाख यौनकर्मियों के बीच किये गये सर्वे से पता चला कि महामारी की वजह से इनमें से 96 फीसदी अपनी आमदनी का जरिया खो चुकी हैं।

याचिका में कहा गया है कि यौनकर्मियों को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार है और उनकी समस्याओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है।

याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की वजह से यौनकर्मी सामाजिक लांछन के कारण अलग-थलग हैं और ऐसी स्थिति में उन्हें सहयोग की आवश्यकता है।

भाषा अनूप

अनूप दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)