जबरन वसूली के लिए नहीं किया जा सकता अदालती प्रक्रिया का इस्तेमाल: दिल्ली उच्च न्यायालय
जबरन वसूली के लिए नहीं किया जा सकता अदालती प्रक्रिया का इस्तेमाल: दिल्ली उच्च न्यायालय
नयी दिल्ली, 22 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ब्लैकमेल करने वाले लोग अवैध निर्माण करने वालों से जबरन वसूली के लिए न्यायिक प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं कर सकते। अदालत ने ऐसी याचिका दायर करने वाले एक वादी पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, साथ ही, वह ऐसे किसी भी बेईमान व्यक्ति की मदद नहीं करेगा जो ऐसे अवैध निर्माण करने वाले व्यक्तियों से जबरन वसूली करे और जिनका संपत्ति में अवैध निर्माण से कोई संबंध नहीं है।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने 18 सितंबर को आदेश सुनाया जिसकी प्रति सोमवार को उपलब्ध हुई।
आदेश के अनुसार, ‘‘यह न्यायालय पहले ही कई याचिकाओं में पक्षकारों के आचरण की निंदा कर चुका है, जहां अनधिकृत निर्माणों के विरुद्ध रिट याचिकाएं केवल धन उगाही के उद्देश्य से दायर की जाती हैं। इस न्यायालय की प्रक्रिया गंभीर है, जिसका उपयोग केवल इस न्यायालय के समक्ष न्याय पाने के लिए किया जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, इस न्यायालय की गंभीर प्रक्रिया का उपयोग ब्लैकमेल करने वालों द्वारा अनधिकृत निर्माण करने वाले व्यक्तियों से धन उगाही के लिए नहीं किया जा सकता।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता तौकीर आलम ने गैर सरकारी संगठन मानव समाज सुधार सुरक्षा संस्था के नाम पर याचिकाएं दायर करने का तरीका अपनाया है और अनधिकृत निर्माण के मामलों में बेईमान वादियों द्वारा अपनाई जा रही यह प्रथा एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाती है।
अदालत ने अनधिकृत निर्माण के खिलाफ अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई पर संतोष प्रकट किया।
उसने आदेश सुनाया, ‘‘हालांकि इस अदालत के समक्ष दी गई दलीलों पर विचार करते हुए याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है जो दिल्ली उच्च न्यायालय अधिवक्ता कल्याण ट्रस्ट को देय होगा।’’
भाषा वैभव नरेश
नरेश

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