न्यायालय व्यापक समाधान का केन्द्र बनें: प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत
न्यायालय व्यापक समाधान का केन्द्र बनें: प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत
पणजी, 26 दिसंबर (भाषा) प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने शुक्रवार को कहा कि वह ऐसे न्यायालय की कल्पना करते हैं जो केवल मुकदमे की सुनवाई का स्थान न हो बल्कि विवाद के व्यापक समाधान का केंद्र बने।
दक्षिण गोवा में ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ के राष्ट्रीय सम्मेलन और मध्यस्थता संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जिला न्यायालयों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक, सभी स्तरों पर अधिक संख्या में मध्यस्थों की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि मध्यस्थता के जरिए लंबित मामलों को कम किया जा सकता है और यह कानून के कमजोर होने का नहीं बल्कि इसके बेहद विकासित होने का संकेत है।
उन्होंने कहा, ‘‘ जब हम भविष्य की ओर देखते हैं तो मैं एक ऐसे न्यायालय की कल्पना करता हूं जहां न्यायालय केवल मुकदमे की सुनवाई का स्थान न हो बल्कि विवाद समाधान का एक व्यापक केंद्र हो।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जब कोई व्यक्ति न्याय के लिए अदालत में जाता है तो उसे मध्यस्थता और अंतत: मुकदमेबाजी की राह मिलनी चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि व्यापक न्यायालय की अवधारणा ‘‘वादियों को सशक्त बनाने का सर्वोच्च साधन’’ है।
कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को ‘मध्यस्थता की शपथ’ दिलाने के बाद, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मध्यस्थता एक ऐसा मुद्दा है जो उनके दिल के बेहद करीब है और जिसके प्रति उनमें गहरी आस्था है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुकदमा अक्सर एक मृत रिश्ते का पोस्टमार्टम और इस बात की नैदानिक जांच होती है कि क्या गलत हुआ वहीं इसके विपरीत, मध्यस्थता एक उपचारात्मक प्रक्रिया है जो रिश्ते की जीवंतता को बनाए रखने का प्रयास करती है। वर्तमान संदर्भ में मध्यस्थता के महत्व को सही मायने में समझने के लिए, हमें स्थानीय बात पर गौर करना चाहिए।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मध्यस्थता की सफलता मध्यस्थ की न केवल स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा बोलने की क्षमता पर निर्भर करती है बल्कि उस व्यक्ति की बोली, भाव-भंगिमाओं और सांस्कृतिक मुहावरों को समझने की क्षमता पर भी निर्भर करती है जिसके लिए मध्यस्थता की जा रही है।
मध्यस्थता प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि 39,000 प्रशिक्षित मध्यस्थ मौजूद हैं, लेकिन ‘मांग और आपूर्ति’ में अंतर है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सभी स्तरों पर मध्यस्थता के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए देश को 2,50,000 से अधिक प्रशिक्षित मध्यस्थों की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि लंबित मामलों को कम करने के लिए वैवाहिक, व्यावसायिक और मोटर दुर्घटना सहित विभिन्न प्रकार के विवादों को सुलझाने के उद्देश्य से इस वर्ष जुलाई में ‘‘राष्ट्र के लिए मध्यस्थता’’ अभियान शुरू किया गया था।
उन्होंने कहा, ‘मैं आपको बताना चाहता हूं कि परिणाम उम्मीद से कहीं बेहतर और बेहद उत्साहजनक रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि हर स्तर पर प्रशिक्षित मध्यस्थों की नियुक्ति से हमारी सफलता की कहानी और भी ऊंचाइयों पर पहुंचेगी और इस दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल होंगी।’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा,‘‘ मध्यस्थता कानून के कमजोर होने का नहीं बल्कि इसके बेहद विकासित होने का संकेत है। यह न्यायिक निर्णय की संस्कृति से सहभागिता की संस्कृति की ओर बढ़ना है, जहां हम सद्भाव को बढ़ावा देते हैं।’’
इस अवसर पर गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा, बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. चंद्रशेखर, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा और गोवा के एडवोकेट जनरल देवीदास पंगम सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
यह कार्यक्रम दक्षिण गोवा स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च’ में आयोजित किया गया था।
इससे पहले दिन में प्रधान न्यायाधीश ने पणजी में कला अकादमी के पास ‘मध्यस्थता जागरुकता’ के लिए एक प्रतीकात्मक पदयात्रा में भाग लिया।
भाषा शोभना माधव
माधव

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