दुर्गम इलाकों में भी पहुंचने का प्रयास कर रहे कोविड टीकाकरण कर्मी

दुर्गम इलाकों में भी पहुंचने का प्रयास कर रहे कोविड टीकाकरण कर्मी

दुर्गम इलाकों में भी पहुंचने का प्रयास कर रहे कोविड टीकाकरण कर्मी
Modified Date: November 29, 2022 / 08:56 pm IST
Published Date: June 22, 2021 11:36 am IST

नयी दिल्ली, 22 जून (भाषा) कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण अभियान में शामिल कर्मी दुर्गम व दूरदराज के आदिवासी इलाकों में भी पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं और इस क्रम में उन्हें पहाड़ी इलाकों में मीलों तक पैदल चलना पड़ता है वहीं उन्हें मोबाइल नेटवर्क की समस्या से भी दो-चार होना पड़ता है। इस बीच ऐसे लोगों से भी उनका सामना होता है जिनके मन में टीकों को लेकर हिचक है।

अरुणाचल प्रदेश के राज्य टीकाकरण अधिकारी दिमोंग पादुंग की टीम में पांच सदस्य हैं जिनमें पोर्टर, नर्स और स्वयंसेवी शामिल हैं। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए दूरदराज के इलाकों की यात्रा की है कि राज्य में पूरी तरह से टीकाकरण हो सके। इसी क्रम में उन्होंने तवांग जिले में लुगुथांग गांव का दौरा किया जो नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) से 60 किमी से अधिक दूर है और वहां पहुंचना काफी मुश्किल है।

उन्होंने पीटीआई-भाषा से फोन पर कहा, ‘‘’मेरी टीम टीकाकरण के लिए जिन दूरदराज के इलाकों में गयी है, यह उनमें से एक है। वहां कोई सड़क नहीं है, इसलिए वाहन से थोड़ी दूरी तय करने के बाद, हमें 2-3 दिनों तक चलना पड़ता है।’’

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पडुंग ने कहा, ‘राहत की एकमात्र बात यह है कि यह क्षेत्र इतनी ऊंचाई पर है कि तापमान लगभग हर समय शून्य रहता है। इससे टीकाकरण प्रक्रिया में मदद मिलती है क्योंकि टीके को 2-8 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाना है।’

लेकिन टीकाकरण टीमों के लिए, ऐसे दूरदराज के इलाकों में पहुंचने से ही समस्या का समाधान नहीं हो जाता। कोविड टीकाकरण के लिए लोगों को पंजीकरण के लिए तैयार करना भी चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए आशा कार्यकर्ता और स्थानीय स्वयंसेवी मददगार होते हैं।

तवांग के जिला टीकाकरण अधिकारी रिनचिन नीमा का हवाला देते हुए अधिकारियों ने एक नर्सिंग सहायक का उदाहरण दिया जो टीकाकरण के लिए स्थानीय लोगों को मनाने की खातिर दलाई लामा की तस्वीर लेकर मागो गांव में घर-घर गया। यह प्रयास कारगर रहा और गांव में 95 वर्षीय एक व्यक्ति को छोड़कर, हर कोई टीकाकरण के लिए तैयार हो गया।

जो स्थान जितनी दूर है, वहां टीकाकरण टीमों के लिए चुनौतियों भी अधिक हैं। नगालैंड राज्य के टीकाकरण अधिकारी रितु थुर की टीम सबसे दूर किफिर जिला गयी थी जो म्यांमा की सीमा के पास है। थुर ने फोन पर कहा, ‘खराब सड़क और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था नहीं होने के कारण इन स्थानों तक पहुंचना मुश्किल है। हमें अक्सर 6-7 घंटे पैदल चलना पड़ता है।’’

उन्होंने कहा कि खराब इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क से उनकी मुश्किलें बढ़ जाती हैं। हालांकि, थुर की टीम भाग्यशाली रही है और उसे टीके को लेकर लोगों में झिझक का सामना नहीं करना पड़ा है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार आदिवासी जिलों में प्रति दस लाख की आबादी पर कोविड टीकाकरण की संख्या 1,73,875 है, जो राष्ट्रीय औसत 1,68,951 से अधिक है। इसके अलावा 176 आदिवासी जिलों में से 128 जिलों का प्रदर्शन अखिल भारतीय टीकाकरण कवरेज से बेहतर है।

भाषा

अविनाश उमा

उमा


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