अरावली की नयी परिभाषा, बिगड़ती वायु गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन पर बहस 2026 में हावी रहेंगे

अरावली की नयी परिभाषा, बिगड़ती वायु गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन पर बहस 2026 में हावी रहेंगे

अरावली की नयी परिभाषा, बिगड़ती वायु गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन पर बहस 2026 में हावी रहेंगे
Modified Date: December 31, 2025 / 05:30 pm IST
Published Date: December 31, 2025 5:30 pm IST

(गुंजन शर्मा)

नयी दिल्ली, 31 दिसंबर (भाषा) अरावली पर्वतमाला की नयी परिभाषा, बिगड़ती वायु गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन पर तेज होती बहस – ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो 2026 में भारत में पर्यावरण क्षेत्र पर हावी रहेंगे और तात्कालिक एवं छिटपुट किए जाने वाले उपायों के बजाय दीर्घकालिक और एकीकृत रणनीतियों की मांग बढ़ने की संभावना है।

वर्ष 2025 में वायु प्रदूषण एक गंभीर और प्रमुख पर्यावरणीय संकट बना रहा, जब शहरी केंद्रों में बार-बार खतरनाक स्तर पर प्रदूषण दर्ज किया गया। दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और अन्य महानगरों में परिवहन, औद्योगिक उत्सर्जन, धूल और दावानल (जंगल की आग) से संबंधित ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले और सूक्ष्म कणों से होने वाले प्रदूषण के स्तर लगातार अधिक बने रहे।

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हालांकि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने बिगड़ती वायु गुणवत्ता के बीच सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा की तात्कालिक जरूरत को देखते हुए आपात उपायों को सख्त किया जिनमें अत्यधिक प्रदूषण के दौरान स्कूलों को अनिवार्य रूप से बंद करना और दफ्तरों के समय में बदलाव जैसे कदम शामिल हैं। हालांकि, कार्रवाई और नीतियों के क्रियान्वयन की धीमी गति से जनता की निराशा भी बढ़ती गई। इसके चलते न्यायिक हस्तक्षेप और राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता रणनीति में व्यापक बदलाव के लिए विशेषज्ञ समूहों की समीक्षा की मांग तेज होती दिखी।

पर्यावरण विशेषज्ञों और आम जनता दोनों ही वायु गुणवत्ता नीति को मजबूत करने की मांग कर रहे हैं, जिसमें परिवहन, औद्योगिक उत्सर्जन, धूल नियंत्रण, अपशिष्ट प्रबंधन और जलवायु से जुड़े जंगल की आग को कम करने के लिए एकीकृत रणनीतियों को शामिल किया जाए।

सरकार ने राज्यों को कई निर्देश भी जारी किए कि प्रदूषण को केवल कुछ महीनों का मुद्दा न मानकर पूरे वर्ष के एजेंडा के रूप में लें और उसके अनुसार एक कार्य योजना तैयार करें।

वर्ष 2025 में विवादास्पद कानूनी और नीतिगत फैसलों के बीच पर्यावरणीय शासन भी सुर्खियों में रहा। उच्चतम न्यायालय द्वारा अरावली पर्वतमाला की सीमा को फिर से परिभाषित कर संरक्षित क्षेत्र की स्थिति केवल 100 मीटर से अधिक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सीमित करने के फैसले की संरक्षणवादियों ने आलोचना की। संरक्षणवादियों का कहना था कि इस कदम से नाजुक निचली भूमि में खनन और विकास को बढ़ावा मिल सकता है, धूल भरी आंधियों के प्राकृतिक अवरोध कमजोर पड़ सकते हैं और दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता की चुनौतियां और बढ़ सकती हैं।

हालांकि, हंगामे के बाद इस फैसले को स्थगित कर दिया गया। उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों से अरावली पर्वतमाला के भीतर नए खनन पट्टों पर प्रतिबंध लगाने को कहा ताकि व्यापक भूवैज्ञानिक रिज और इसकी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की रक्षा की जा सके, जो नियामक लचीलेपन और पर्यावरण संरक्षण के बीच जटिल संतुलन को रेखांकित करता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने सीओपी30 में ब्राजील के नेतृत्व वाले ‘ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फैसिलिटी’ में एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होकर अपनी वानिकी कूटनीति को दृढ़ता से पेश किया, जो उष्णकटिबंधीय वन संरक्षण और बहाली के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण सुरक्षित करने के लिए डिजाइन किए गए बहुपक्षीय तंत्रों के साथ जुड़ने के इरादे का संकेत देता है।

भारत संरक्षण की कूटनीति में एक अग्रणी देश के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने की दिशा में भी काम कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को बढ़ावा देने के लिए 2026 में नयी दिल्ली में वैश्विक बाघ शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है।

भाषा सुरभि माधव

माधव


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