नयी दिल्ली, 28 दिसंबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने 2009 के तेजाब हमले के एक मामले में तीन लोगों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा है। अदालत ने पुलिस को ‘‘लापरवाह और गैर-पेशेवर’’ जांच करने के लिए कड़ी फटकार भी लगायी।
अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह जांच आरोपियों को बचाने के उद्देश्य से की गयी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह ने यशविंदर, बाला और मनदीप को बरी कर दिया। यह आदेश 24 दिसंबर को दिया गया, लेकिन इसकी प्रति रविवार को उपलब्ध हुई।
तीनों पर हरियाणा के पानीपत में एमबीए छात्रा शाहीन मलिक पर तेजाब हमला कराने के लिए एक नाबालिग के साथ आपराधिक साजिश रचने का आरोप था। नाबालिग को 17 दिसंबर 2015 को इस अपराध में दोषी ठहराया जा चुका है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘शुरुआत से ही जांच बेहद लापरवाह और गैर-पेशेवर तरीके से की गई, जिसमें यह संवेदनशीलता भी नहीं दिखाई गई कि यह तेजाब हमले का मामला है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘जिस तरह से जांच की गई, उससे यह संदेह होता है कि क्या यह जानबूझकर आरोपियों को बचाने के लिए की गई थी।’’
उसने कहा कि 19 नवंबर 2009 को हुई घटना के कई वर्षों बाद तक पुलिस ने आरोपियों की पहचान के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाया और मार्च 2010 में ‘‘अनट्रेस रिपोर्ट’’ दाखिल कर दी। पीड़िता का बयान अक्टूबर 2013 में दर्ज किया गया।
‘अनट्रेस रिपोर्ट’ तब दाखिल की जाती है जब पुलिस किसी मामले की जांच के दौरान आरोपी का पता नहीं लगा पाती है।
न्यायाधीश ने मामले की जांच में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, ‘‘इन खामियों को देखते हुए यह संदेह होता है कि जांच जानबूझकर अभियोजन के मामले को कमजोर करने के लिए की गई।’’
अदालत ने पानीपत के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को जांच में हुई चूकों की जांच करने, दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने और 30 दिनों के भीतर उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया। एसपी को अनुपालन रिपोर्ट भी अदालत में दाखिल करने को कहा गया है।
अभियोजन के अनुसार, मलिक पर 2009 में उस समय तेजाब हमला किया गया जब वह पानीपत में यशविंदर के स्वामित्व वाले एक कॉलेज में स्टूडेंट काउंसलर के रूप में काम कर रही थीं और साथ ही पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई कर रही थीं।
अभियोजन का दावा था कि यशविंदर ने कार्यस्थल पर उसका उत्पीड़न किया और उसकी पत्नी बाला ने विश्वविद्यालय के दो छात्रों मनदीप मान और एक नाबालिग के साथ मिलकर मलिक पर हमला कराने की साजिश रची।
यह मामला 2013 में पानीपत से दिल्ली की रोहिणी अदालत में स्थानांतरित किया गया।
उच्चतम न्यायालय ने चार दिसंबर को इस मामले से जुड़ी एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए तेजाब हमले के मामलों में धीमी सुनवाई को ‘‘न्याय व्यवस्था का मजाक’’ बताया था और सभी उच्च न्यायालयों से चार सप्ताह में ऐसे लंबित मामलों का ब्योरा मांगा था।
भाषा गोला सुरेश
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