दिल्ली आबकारी नीति मामला: न्यायालय का मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर विचार करने से इंकार
दिल्ली आबकारी नीति मामला: न्यायालय का मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर विचार करने से इंकार
नयी दिल्ली, 28 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की एक याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इंकार कर दिया, जिसमें उन्होंने आबकारी नीति मामले में जमानत प्रदान करने और प्राथमिकी को रद्द किए जाने का अनुरोध किया।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इससे गलत परंपरा कायम होगी और उनके (सिसोदिया) पास प्रभावी वैकल्पिक उपाय हैं।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि याचिकाकर्ता (सिसोदिया) के पास दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत प्रभावी वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं, इसलिए हम मौजूदा स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। इसलिए याचिका का निपटारा किया जाता है।’’
पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि घटना दिल्ली में हुई है, सिसोदिया सीधे शीर्ष अदालत में नहीं आ सकते हैं। पीठ ने कहा कि उनके पास संबंधित निचली अदालत के साथ-साथ दिल्ली उच्च न्यायालय के पास जाने के भी उपाय हैं।
सिसोदिया की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने आम आदमी पार्टी (आप) के नेता को गिरफ्तार करने की जरूरत पर सवाल उठाते हुए कहा कि नीतिगत फैसले अलग-अलग स्तर पर लिए गए और इसके अलावा कोई रकम बरामद नहीं हुई। उन्होंने यह भी कहा कि उपराज्यपाल भी आबकारी नीति में नीतिगत फैसले का हिस्सा थे।
शीर्ष अदालत ने जब कहा कि वह मौजूदा स्थिति में याचिका पर विचार नहीं करेगी, सिंघवी ने इसे वापस ले लिया।
सुनवाई की शुरुआत में, पीठ ने पूछा, ‘‘आप प्राथमिकी को चुनौती देने और जमानत के लिए अनुच्छेद 32 का जिक्र कर रहे हैं। आपके पास उपाय हैं।’’ सिंघवी ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी और विनोद दुआ के मामले में शीर्ष अदालत के फैसलों का जिक्र किया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अर्नब गोस्वामी का मामला बंबई उच्च न्यायालय से इस अदालत तक पहुंचा था।’’ साथ ही पीठ ने कहा, दुआ का मामला एक पत्रकार की वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में था और वर्तमान मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से संबंधित है।
पीठ ने कहा, ‘‘आपके पास पूर्ण उपाय उपलब्ध है। सक्षम अदालत के समक्ष जमानत याचिका दायर करने के रूप में या उच्च न्यायालय के समक्ष 482 (दंड प्रक्रिया संहिता) के रूप में याचिका दायर करने का विकल्प आपके लिए खुला है।’’
सिंघवी ने कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर नहीं जा रहे हैं और अगस्त 2022 में मामले में प्राथमिकी दर्ज किए जाने समेत कुछ बिंदुओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सिसोदिया को पूछताछ के लिए दो बार बुलाया गया था और वह दोनों बार पूछताछ के लिए गए।
गिरफ्तारी अपने आप में अवैध होगी, यह दलील देते हुए सिंघवी ने गिरफ्तारी के लिए ‘ट्रिपल टेस्ट’ का जिक्र करते हुए कहा कि ना तो उनके भागने का जोखिम है, समन पर भी वह पेश हुए थे और सबूतों के साथ किसी तरह कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
सिंघवी ने कहा, ‘‘मेरे मामले में ये तीनों बात नहीं है। समाज से मेरा (सिसोदिया) गहरा जुड़ाव है। मेरे पास 18 विभाग हैं। भागने का कोई सवाल ही नहीं है।’’
सिंघवी ने कहा, ‘‘आरोप आबकारी नीति पर बहुस्तरीय निर्णय लेने का है। यह अवर सचिव, संयुक्त सचिव, सचिव, मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल से होकर गुजरा है। सभी ने आबकारी नीति को मंजूरी दी।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम शक्तियों से वंचित हैं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह बहुत गलत परंपरा है।’’ साथ ही पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय जा सकता है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से जुड़ा मामला है।’’ साथ ही पीठ ने पूछा कि क्या ये चीजें आप दिल्ली उच्च न्यायालय से नहीं कह सकते।
सिंघवी ने कहा कि उच्च न्यायालय में संबंधित रोस्टर न्यायाधीश पीएफआई न्यायाधिकरण का प्रभार संभाल रहे हैं और 60 प्रतिशत समय, वह सुनवाई नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें न्यायाधिकरण का संचालन करना होता है। प्रधान न्यायाधीश ने सिंघवी से कहा, ‘‘जो भी दिक्कतें हैं… वहां मुख्य न्यायाधीश हैं। आप इसका उल्लेख मुख्य न्यायाधीश के समक्ष कर सकते हैं।’’
इससे पहले दिन में सिंघवी द्वारा तत्काल सुनवाई का उल्लेख किए जाने के बाद शीर्ष अदालत मंगलवार को ही सिसोदिया की याचिका पर सुनवाई करने पर सहमत हो गई थी।
भाषा आशीष दिलीप
दिलीप

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