legal recognition of same-sex marriage reflects 'urban elitist' view

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का अनुरोध, केंद्र ने कोर्ट में कहा यह ‘शहरी संभ्रांतवादी’ विचारों का परिचायक

इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।

Edited By :   Modified Date:  April 17, 2023 / 01:03 PM IST, Published Date : April 17, 2023/12:07 pm IST

same-sex marriage: नयी दिल्ली। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं ‘‘शहरी संभ्रांतवादी’’ विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए।

केंद्र ने याचिकाओं के विचारणीय होने पर सवाल करते हुए कहा कि इस अदालत के सामने जो (याचिकाएं) पेश किया गया है, वह सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य से मात्र शहरी संभ्रांतवादी विचार है।

उसने कहा, ‘‘सक्षम विधायिका को सभी ग्रामीण, अर्द्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी के व्यापक विचारों और धार्मिक संप्रदायों के विचारों को ध्यान में रखना होगा। इस दौरान ‘पर्सनल लॉ’ के साथ-साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों और इसके अन्य कानूनों पर पड़ने वाले अपरिहार्य व्यापक प्रभावों को भी ध्यान में रखना होगा।’’

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same-sex marriage: केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह की कानूनी वैधता का अनुरोध करने वाली याचिकाओं के एक समूह के जवाब में दायर शपथपत्र में यह प्रतिवेदन दिया।

शपथ पत्र में कहा गया है कि विवाह एक सामाजिक-वैधानिक संस्था है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत एक अधिनियम के माध्यम से केवल सक्षम विधायिका द्वारा बनाया जा सकता है, मान्यता दी जा सकती है, कानूनी वैधता प्रदान की जा सकती है और विनियमित किया जा सकता है।

केंद्र ने कहा, ‘‘इसलिए अर्जी देने वाले का यह विनम्र अनुरोध है कि इस याचिका में उठाए गए मुद्दों को निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के विवेक पर छोड़ दिया जाए, क्योंकि ये प्रतिनिधि ही लोकतांत्रिक रूप से व्यवहार्य और ऐसे वैध स्रोत हैं, जिनके माध्यम से किसी नए सामाजिक संस्थान का गठन किया जा सकता है/उसे मान्यता दी जा सकती है और/या उसे लेकर समझ में कोई बदलाव किया जा सकता है।’’

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उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराए जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करेगी।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस. के कौल, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ 18 अप्रैल को इन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी। उच्चतम न्यायालय ने इन याचिकाओं को 13 मार्च को पांच न्यायाधीशों की इस संविधान पीठ के पास भेज दिया था और कहा था कि यह मुद्दा ‘‘बुनियादी महत्व’’ का है।

इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।

 

 
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