हर राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश में एनआईए की समर्पित अदालत होगी: केंद्र ने न्यायालय से कहा

हर राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश में एनआईए की समर्पित अदालत होगी: केंद्र ने न्यायालय से कहा

हर राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश में एनआईए की समर्पित अदालत होगी: केंद्र ने न्यायालय से कहा
Modified Date: December 16, 2025 / 09:55 pm IST
Published Date: December 16, 2025 9:55 pm IST

नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि उसने आतंकवाद से जुड़े मामलों में त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए हर राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की एक समर्पित अदालत स्थापित करने का फैसला लिया है।

केंद्र ने शीर्ष अदालत को यह भी बताया कि उन राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में एक से अधिक विशेष एनआईए अदालत स्थापित करने का निर्णय लिया गया है, जहां आतंकवाद विरोधी कानून के तहत 10 से अधिक मामले विचाराधीन हैं।

वहीं, दिल्ली सरकार ने प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ को बताया कि संगठित अपराध और आतंकवाद से जुड़े मामलों से निपटने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में 16 विशेष अदालतें स्थापित की जा रही हैं।

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पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार से विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच क्षेत्राधिकार संबंधी किसी भी संघर्ष से बचने की खातिर पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिए महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) जैसा कड़ा संगठित अपराध-निरोधक कानून लागू करने की संभावनाएं तलाशने को कहा।

एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों में कई मामलों में नामजद गैंगस्टर महेश खत्री का जिक्र करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संगठित अपराध में शामिल शातिर अपराधी एनसीआर में क्षेत्राधिकार संबंधी मुद्दों का अनुचित फायदा उठाते हैं और कानून से बच निकलते हैं।

खत्री सुनवाई में देरी के आधार पर जमानत का अनुरोध लेकर अदालत पहुंचा है।

पीठ ने कहा, “कभी-कभी अपराध ‘ए’ राज्य में घटता है और अपराधी ‘बी’ राज्य में चला जाता है, लेकिन त्वरित जांच के लिए किस अदालत या एजेंसी को मामले का संज्ञान लेना चाहिए, या किन न्यायालयों के पास सक्षम क्षेत्राधिकार होगा, यह सुनवाई में एक मुद्दा बन जाता है।”

पीठ खत्री और कैलाश रामचंदानी की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

कैलाश रामचंदानी महाराष्ट्र के गढ़चिरोली का रहने वाला एक नक्सल समर्थक है, जिसके खिलाफ 2019 में आईईडी विस्फोट में त्वरित प्रतिक्रिया दल के 15 पुलिसकर्मियों की मौत के बाद मामला दर्ज किया गया था।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अंततः इसका लाभ कुख्यात अपराधियों को ही मिलता है, जो समाज या राष्ट्र के हित में नहीं होता।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि इस मुद्दे पर विचार करने की जरूरत है, जिसमें एनसीआर क्षेत्र में मौजूदा कानूनी ढांचे के प्रभावी इस्तेमाल के लिए प्रभावी कानूनों के निर्माण की वांछनीयता भी शामिल है।’’

खत्री के मामले में कई प्राथमिकी दर्ज होने का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति बागची ने केंद्री की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और दिल्ली सरकार की ओर से पेश एसडी संजय से कहा कि वे ऐसे मामलों में एनआईए अधिनियम लागू करने की संभावना तलाश सकते हैं, जहां विभिन्न राज्यों में कई प्राथमिकी दर्ज हैं।

उन्होंने कहा कि एनआईए के पास सभी जांचों को अपने हाथ में लेने की सर्वोच्च शक्ति है, खासतौर पर संगठित अपराध की इन श्रेणियों के संबंध में।

भाटी ने केंद्र की ओर दाखिल यथास्थिति रिपोर्ट की ओर इशारा करते हुए कहा कि केंद्रीय गृह सचिव की विभिन्न राज्यों के गृह सचिवों के साथ एक ऑनलाइन बैठक हुई, जिसमें इस बात पर सहमति बनी कि एनआईए से जुड़े मामलों से निपटने के लिए अतिरिक्त बुनियादी ढांचा और न्यायिक पद सृजित किए जाएंगे तथा आवश्यक धनराशि आवंटित की जाएगी।

भाटी ने कहा कि केंद्र ने हर राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश में विशेष एनआईए अदालतें स्थापित करने का निर्णय लिया है और जहां केरल की तरह प्रतिबंधित पीएफआई से संबंधित मामलों के कारण 10 से अधिक मामले विचाराधीन हैं, वहां एक से अधिक एनआईए अदालतें स्थापित की जाएंगी।

उन्होंने कहा, “मैं कह सकती हूं कि केंद्र सरकार ने अतिरिक्त एनआईए अदालतों की स्थापना के लिए आवर्ती और गैर-आवर्ती व्यय के लिए एक करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा है।”

वहीं, संजय ने बताया कि दिल्ली में गैंगस्टर और आतंकवाद से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए स्थापित की जाने वाली 16 विशेष अदालतें तीन महीने में काम करना शुरू कर देंगी।

पीठ ने कहा, “हम चाहते हैं कि ये समर्पित अदालतें एनआईए और विशेष कानून से जुड़े मामलों में दैनिक सुनवाई करें और किसी अन्य मामले की सुनवाई न करें। केवल खाली रहने पर ही वे अन्य मामलों पर विचार करेंगी।”

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि मौजूदा अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित किया जाए और विशेष अधिनियम संबंधी मामलों को सौंपकर मौजूदा न्यायिक तंत्र पर बोझ डाला जाए।

भाटी और संजय ने पीठ को भरोसा दिलाया कि ऐसा नहीं होगा और अतिरिक्त बुनियादी ढांचा विकसित किया जा रहा है।

शीर्ष अदालत ने भाटी और संजय को मामले में कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। उसने मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में तय कर दी।

इससे पहले, जुलाई में सर्वोच्च न्यायालय ने मौजूदा अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित करने के लिए केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी तथा विशेष मामलों के लिए नयी अदालतों के गठन का निर्देश दिया था।

भाषा पारुल सुरेश

सुरेश


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