नई दिल्ली। प्रसिद्ध साहित्यकार और ज्ञानपीठ अवॉर्ड से सम्मानित कृष्णा सोबती का शुक्रवार को निधन हो गया। कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को आज के पाक के एक कस्बे में हुआ था। उन्होंने अपनी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण और स्त्री जीवन की जटिलताओं का जिक्र किया था। सोबती राजनीति-सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए भी जानीं जाती रहीं।
2015 में देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज होकर उन्होंने अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापस लौटा दिया था। उनके उपन्यास मित्रो मरजानी को हिंदी साहित्य में महिला मन के अनुसार लिखी गई साहसी रचनाओं में गिना जाता है। उनके एक और उपन्यास जिंदगीनामा को हिंदी साहित्य की कालजयी रचनाओं में से माना जाता है। उन्हें पद्म भूषण की भी पेशकश की गई थी, लेकिन उसे उन्होंने ठुकरा दिया था।
उनकी रिश्तेदार अभिनेत्री एकावली खन्ना ने बताया कि शुक्रवार को अस्पताल में उनका निधन हो गया। पिछले कुछ महीनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी। उन्होंने पिछले महीने अस्पताल में ही अपनी नई किताब लोकार्पित थी। अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद वह हमेशा कला, रचनात्मक प्रक्रियाओं और जीवन पर चर्चा करती रहती थी।
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बता दें कि 18 फरवरी, 1925 को जन्मीं सोबती को उनके उपन्यास जिंदगीनामा के लिए 1980 में साहित्य अकादमी प्राप्त हुआ था। भारतीय साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें 2017 में ज्ञानपीठ सम्मान से भी नवाजा गया था। सोबती को उनके 1966 के उपन्यास मित्रो मरजानी से ज्यादा लोकप्रियता मिली। कृष्णा सोबती की कालजयी रचनाओं में सूरजमुखी अंधेरे के, दिलोदानिश, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, मित्रो मरजानी का नाम लिया जाता है।