उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब का बेहतरीन नमूना, हमें अपनी विविधता पर प्रसन्न होना चाहिए: न्यायालय |

उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब का बेहतरीन नमूना, हमें अपनी विविधता पर प्रसन्न होना चाहिए: न्यायालय

उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब का बेहतरीन नमूना, हमें अपनी विविधता पर प्रसन्न होना चाहिए: न्यायालय

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Modified Date: April 16, 2025 / 03:28 PM IST
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Published Date: April 16, 2025 3:28 pm IST

नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उर्दू को ‘गंगा जमुनी तहजीब’ का बेहतरीन नमूना बताते हुए कहा कि उर्दू इसी धरती पर पैदा हुई है और इसे मुसलमानों की भाषा मानना ​​वास्तविकता तथा ‘विविधता में एकता’ के मार्ग से ‘दुखद विचलन’ है।

महाराष्ट्र में एक नगरपालिका के साइनबोर्ड में उर्दू के इस्तेमाल को चुनौती देने संबंधी याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मंगलवार को यह भी कहा कि ‘‘भाषा कोई धर्म नहीं है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘भाषा संस्कृति है। भाषा किसी समुदाय और उसके लोगों की सभ्यतागत यात्रा को मापने का पैमाना है। उर्दू का मामला भी ऐसा ही है। यह गंगा-जमुनी तहजीब या हिंदुस्तानी तहजीब का बेहतरीन नमूना है… हमें अपनी विविधता, जिसमें हमारी अनेक भाषाएं भी शामिल हैं, का सम्मान करना चाहिए और उनका आनंद लेना चाहिए।’’

शीर्ष अदालत महाराष्ट्र के अकोला जिले के पातुर की पूर्व पार्षद वर्षाताई द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने नगर परिषद के नाम वाले बोर्ड पर मराठी के साथ-साथ उर्दू के प्रयोग को चुनौती दी थी।

वर्षाताई ने अपनी याचिका में कहा कि नगर परिषद का काम केवल मराठी में ही किया जा सकता है, किसी भी तरह से उर्दू का इस्तेमाल जायज नहीं है, भले ही परिषद के साइनबोर्ड पर ही लिखना भर क्यों न हो।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नगर परिषद ने बोर्ड पर उर्दू का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि बहुत से स्थानीय निवासी उर्दू भाषा समझते हैं।

न्यायालय ने कहा, ‘‘नगर परिषद केवल इतना चाहती थी कि प्रभावी तरीके से संवाद हो सके।’’

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘उर्दू के खिलाफ पूर्वाग्रह इस गलत धारणा से उपजा है कि उर्दू भारत से नहीं है। यह राय गलत है क्योंकि मराठी और हिंदी की तरह उर्दू भी एक ‘इंडो-आर्यन’ भाषा है। यह एक ऐसी भाषा है जिसका जन्म इसी भूमि पर हुआ है।’’

अदालत ने कहा कि उर्दू भारत में विभिन्न सांस्कृतिक परिवेशों से जुड़े लोगों की जरूरत के कारण विकसित और फली-फूली, जो विचारों का आदान-प्रदान करना चाहते थे और आपस में संवाद करना चाहते थे।

अदालत ने कहा कि किसी भाषा के खिलाफ गलत धारणाओं और पूर्वाग्रहों को वास्तविकता के सामने साहसपूर्वक और सच्चाई से परखा जाना चाहिए।

भाषा शोभना सुरेश

सुरेश

 

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