पूर्व सेना प्रमुख जनरल सुंदरराजन पद्मनाभन का चेन्नई में निधन

पूर्व सेना प्रमुख जनरल सुंदरराजन पद्मनाभन का चेन्नई में निधन

पूर्व सेना प्रमुख जनरल सुंदरराजन पद्मनाभन का चेन्नई में निधन
Modified Date: August 19, 2024 / 12:06 pm IST
Published Date: August 19, 2024 12:06 pm IST

चेन्नई, 19 अगस्त (भाषा) पूर्व सेना प्रमुख जनरल सुंदरराजन पद्मनाभन का चेन्नई में 83 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके करीबी सूत्र ने सोमवार को यह जानकारी दी।

जनरल पद्मनाभन को सैन्य हलकों में प्यार से ‘पैडी’ के नाम से जाना जाता था। उन्होंने 30 सितंबर 2000 से 31 दिसंबर 2002 तक थल सेनाध्यक्ष के रूप में सेवाएं दी थीं।

दिल्ली में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (एनडीसी) में शामिल होने से पहले जनरल पद्मनाभन ने एक स्वतंत्र तोपखाना ब्रिगेड और एक ‘माउंटेन ब्रिगेड’ की कमान संभाली थी। 15 कोर के कमांडर के रूप में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें अति विशिष्ट सेवा पदक (एवीएसएम) से सम्मानित किया गया था।

 ⁠

पांच दिसंबर, 1940 को केरल के तिरुवनंतपुरम में जन्मे जनरल पद्मनाभन देहरादून स्थित प्रतिष्ठित राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज (आरआईएमसी) और पुणे के खडकवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के पूर्व छात्र थे।

दिसंबर 1959 में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) से स्नातक होने के बाद उन्हें ‘आर्टिलरी रेजिमेंट’ में नियुक्त किया गया था।

यहां एक रक्षा विज्ञप्ति में कहा गया है कि जनरल पद्मनाभन ने अपने शानदार करियर में कई प्रतिष्ठित पद संभाले और कई बड़े अभियानों में हिस्सा लिया।

उन्होंने वर्ष 1973 में वेलिंगटन स्थित ‘डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज’ (डीएसएससी) से स्नातक किया।

जनरल पद्मनाभन ने अगस्त 1975 से जुलाई 1976 तक एक स्वतंत्र ‘लाइट बैटरी’ की कमान संभाली और फिर सितंबर 1977 से मार्च 1980 तक ‘गजाला माउंटेन रेजिमेंट’ का नेतृत्व किया।

यह पर्वतीय रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी तोपखाना रेजिमेंट में से एक है और इसने कई युद्ध में हिस्सा लिया है।

जनरल पद्मनाभन ने सितंबर 1992 से जून 1993 तक 3 कोर के ‘चीफ ऑफ स्टाफ’ के रूप में कार्य किया। लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में पदोन्नति के बाद वह जुलाई 1993 से फरवरी 1995 तक कश्मीर घाटी में 15 कोर के कमांडर थे। 15 कोर के कमांडर के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान सेना ने कश्मीर में आतंकवादियों पर बड़ी बढ़त हासिल की।

जनरल पद्मनाभन 43 वर्ष से अधिक की विशिष्ट सैन्य सेवा के बाद 31 दिसंबर 2002 को सेवानिवृत्त हो गए।

भाषा संतोष पारुल

पारुल


लेखक के बारे में