हाशिमपुरा नरसंहार मामला : उच्चतम न्यायालय ने दो और दोषियों को जमानत दी

हाशिमपुरा नरसंहार मामला : उच्चतम न्यायालय ने दो और दोषियों को जमानत दी

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  • Publish Date - December 20, 2024 / 05:14 PM IST,
    Updated On - December 20, 2024 / 05:14 PM IST

नयी दिल्ली, 20 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा में प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) के जवानों द्वारा 38 लोगों के नरसंहार के मामले में दो और दोषियों को शुक्रवार को जमानत दे दी।

शीर्ष अदालत ने छह दिसंबर को मामले में आठ दोषियों की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली थी।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दोषी बुधी सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी की दलीलों का संज्ञान लिया, जिन्होंने समता के आधार पर जमानत देने का अनुरोध करते हुए कहा था कि उनका मुवक्किल छह साल से अधिक समय से जेल में है।

दोषी बसंत बल्लभ की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने भी अपने मुवक्किल को समान आधार पर राहत देने का अनुरोध किया।

पीठ ने अपने पिछले आदेश का हवाला देते हुए दोनों दोषियों को जमानत दे दी।

कुछ दोषियों की पैरवी करते हुए तिवारी ने दलील दी थी कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद से अपीलकर्ता छह साल से अधिक समय से जेल में हैं।

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अपीलकर्ताओं को पहले सुनवाई अदालत ने बरी कर दिया था और मुकदमे के दौरान उनका आचरण अनुकरणीय था।

तिवारी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सुनवाई अदालत के बरी करने के उचित फैसले को गलत आधार पर पलट दिया था।

हाशिमपुरा नरसंहार 22 मई 1987 को हुआ था, जब 41वीं बटालियन की ‘सी-कंपनी’ से संबंधित पीएसी जवानों ने सांप्रदायिक तनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हाशिमपुरा से लगभग 50 मुस्लिम लोगों को पकड़ लिया था।

पीड़ितों को सांप्रदायिक दंगों के कारण सुरक्षित स्थान पर ले जाने के बहाने शहर के बाहरी इलाके में ले जाया गया। वहां उन्हें गोली मार दी गई और उनके शवों को एक नहर में फेंक दिया गया।

इस घटना में 38 लोगों की मौत हो गई थी और केवल पांच लोग जीवित बचे थे, जिन्होंने इस भयावह घटना को बयां किया था।

सुनवाई अदालत ने 2015 में पीएसी के 16 जवानों को उनकी पहचान और संलिप्तता स्थापित करने के लिए सबूतों की कमी का हवाला देते हुए बरी कर दिया था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2018 में सुनवाई अदालत के फैसले को पलट दिया था। उसने 16 आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-302 (हत्या), 364 (हत्या के लिए अपहरण करना), 201 (साक्ष्यों को गायब करना) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

दोषियों ने उच्च न्यायालय के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी, जिन पर फैसला लंबित है।

भाषा पारुल नरेश

नरेश