उच्च न्यायालय ने बच्ची से बलात्कार और हत्या के दोषी की मौत की सजा को सश्रम आजीवन कारावास में बदला
उच्च न्यायालय ने बच्ची से बलात्कार और हत्या के दोषी की मौत की सजा को सश्रम आजीवन कारावास में बदला
चंडीगढ़, 26 दिसंबर (भाषा) पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने साढ़े पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में एक व्यक्ति की मौत की सजा को सश्रम आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया है और उसकी मां को बरी कर दिया।
अदालत ने कहा कि ‘अपने राजा बेटे की रक्षा करने की कोशिश’ के लिए दोषी की मां को दंडित करने के लिये भारतीय दंड संहिता में कोई धारा नहीं है।
दोषी को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए (जिसमें 30 वर्ष की सजा में कोई छूट नहीं दी जाएगी) अदालत ने कहा कि हत्या स्पष्ट रूप से बलात्कार के सबूतों को नष्ट करने की घबराहट में की गई थी, न कि यह पूर्व नियोजित कृत्य था। अदालत ने जुर्माने की राशि भी बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दी।
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति अनूप चितकारा और सुखविंदर कौर की पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि परिवार के सदस्यों (विशेष रूप से माताओं) को अक्सर अपने ‘अनमोल’ बेटों के लिए इतना अंधा प्रेम होता है कि वे चाहे कितने भी दोषी या बुरे क्यों न हों, उन्हें फिर भी ‘राजा बेटे’ के रूप में माना जाता है।
मां को सभी आरोपों से बरी करते हुए न्यायाधीशों ने कहा कि उन्होंने पुलिस को सूचित करने या पीड़िता के लिए न्याय मांगने के बजाय अपने बेटे को बचाने को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा, ‘‘यह सामाजिक दृष्टिकोण, चाहे कितना ही चिंताजनक क्यों न हो, नया नहीं है; यह क्षेत्र की पितृसत्तात्मक मानसिकता और संस्कृति में गहराई से निहित है।’’
निचली अदालत ने 2020 में वीरेंद्र उर्फ भोलू को 2018 के बलात्कार और हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई थी और उसकी मां कमला देवी को साजिश रचने और सबूत नष्ट करने के आरोप में कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
उच्च न्यायालय ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में हुई हत्या बलात्कार के सबूतों को नष्ट करने की घबराहट के कारण हुई थी, न कि कोई पूर्व नियोजित कृत्य था। इसलिए, आरोपी का जीवन न्यायिक प्रक्रिया द्वारा नहीं छीना जाना चाहिए, बल्कि बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए उसे ऐसी सजा दी जानी चाहिए जिससे वह असमर्थ हो जाए, जो कि उस भयानक और क्रूर अपराध—पाँच साल छह महीने की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या—के अनुरूप भी हो, जिसे आरोपी अच्छी तरह जानता था।”
फैसले में कहा गया, ‘‘संदर्भित न्यायिक निर्णयों के आलोक में, मृत्यु दंड को सश्रम आजीवन कारावास में तब्दीला किया जाता है; हालांकि, पीड़िता की आयु केवल पाँच साल और सात महीने होने के कारण, हम 30 साल की सजा बिना किसी रियायत के देने के पक्ष में हैं, जो इस विशेष तथ्य और परिस्थितियों में न्यायसंगत होगी और सड़क पर अन्य लड़कियों को आरोपी की विकृत प्रवृत्ति से भी सुरक्षित रखेगी।’’
उच्च न्यायालय ने दोषी की मां कमला देवी को भी सभी आरोपों से बरी कर दिया।
हालांकि, अदालत ने कहा, ‘‘दुर्भाग्यवश, भारत के इस हिस्से में परिवार के सदस्य, विशेषकर माताएँ, अपने अनमोल पुत्रों के प्रति इतनी अंधी मोहब्बत रखते हैं कि वे चाहे कितने ही दोषी या बुरे क्यों न हों, उन्हें फिर भी ‘राजा बेटा’ ही माना जाता है।’’
उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, ‘कमला देवी को जब पता चला कि उनका ‘राजा-बेटा’ (भोलू) अपने नाम के विपरीत भोला नहीं था और उसने पांच साल की बच्ची पर हमला करके उसकी बेरहमी से हत्या कर दी थी, तो उन्होंने पुलिस को सूचित करने या लाडो के लिए न्याय मांगने के बजाय अपने बेटे को बचाने को प्राथमिकता दी। यह सामाजिक रवैया, चाहे कितना भी भयावह क्यों न हो, नया नहीं है; यह क्षेत्र की पितृसत्तात्मक मानसिकता और संस्कृति में गहराई से समाया हुआ है।’
उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, ‘कमला देवी की एकमात्र गलती यह है कि वह अपने राजा-बेटे की रक्षा करने की कोशिश कर रही थीं, जिसके लिए उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जा सकता, चाहे उनका आचरण कितना भी निंदनीय क्यों न हो। इसलिए, कमला देवी के खिलाफ आपराधिक साजिश या सबूत नष्ट करने का मामला साबित करने के लिए कानूनी रूप से कोई मान्य साक्ष्य नहीं है।’
मई 2018 में वीरेंद्र उर्फ भोलू ने बच्ची से बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी। वह बच्ची के पिता का कर्मचारी था और तम्बू लगाने का काम करता था। वीरेंद्र लगभग पांच से छह साल से उनके साथ काम कर रहा था।
उसी वर्ष 31 मई को लड़की के पिता और वीरेंद्र थोड़ी दूरी पर एक तम्बू लगाने गए। वीरेंद्र पीड़िता के पिता के लिए दोपहर का भोजन लेने उसके घर गया।
लौटते समय बच्ची वीरेंद्र के साथ थी। दोपहर के भोजन के बाद जब बच्ची के पिता झपकी ले रहे थे, तो वीरेंद्र उसे अपने घर ले गया और उसने उसके साथ बलात्कार करने के बाद चाकू से उसकी हत्या कर दी। इसके बाद उसने शव को उस डिब्बे में छिपा दिया, जिसमें उसकी मां आटा रखती थी।
उस समय कमला देवी घर पर नहीं थीं।
भाषा
शुभम दिलीप
दिलीप

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