हाई कोर्ट ने मनुस्मृति का जिक्र कर पत्नी को गुजारा भत्ता देने से किया इनकार, सास की सेवा भारतीय संस्कृति

High Court refuses to pay maintenance to wife citing Manu Smriti:

हाई कोर्ट ने मनुस्मृति का जिक्र कर पत्नी को गुजारा भत्ता देने से किया इनकार, सास की सेवा भारतीय संस्कृति
Modified Date: January 25, 2024 / 04:59 pm IST
Published Date: January 25, 2024 4:59 pm IST

High Court citing Manu Smriti: रांची। एक पत्नी की ओर से पति से गुजारा भत्ता की मांग की गई थी। इसे लेकर दुमका के फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाई कोर्ट ने कई धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने धार्मिक ग्रंथों के साथ संविधान का भी जिक्र किया। जिसमें मौलिक कर्तव्यों का जिक्र किया गया।

रांची हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बहू को पति की मां और दादी सास की सेवा करना चाहिए। पत्नी को अलग रहने की जिद नहीं करनी चाहिए। हाई कोर्ट के जस्टिस सुभाष चंद की अदालत ने कई धर्म ग्रंथों, साहित्यों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए यह बात कही। अदालत ने दुमका के फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि बहू अपनी सास या परिवार के किसी बुजुर्ग की सेवा नहीं करने के लिए पति को परिवार से अलग रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती और न ही इस आधार पर अलग रह सकती है।

महिलाएं दुखी होती है, तो परिवार जल्द हो जाता है नष्ट

जस्टिस चंद ने मनृ स्मृति के श्लोकों का हवाला देते हुए कहा-‘जहां परिवार की महिलाएं दुखी होती हैं, वह परिवार जल्द ही नष्ट हो जाता है, लेकिन महिलाएं संतुष्ट रहती हैं, वह परिवार हमेशा फलता-फूलता है।

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बूढ़ी सास या दादी सास की सेवा करना देश की संस्कृति

हाई कोर्ट ने संविधान के अनुच्देद 51 ए का हवाला देते हुए नागरिक के मौलिक कर्तव्य का भी जिक्र किया। इसके साथ ही जज ने मामले को संस्कृति और विरासत से जोड़ते हुए कहा कि पत्नी को बूढ़ी सास या दादी सास की सेवा करना भारत की संस्कृति है। न्यायालय ने परिवार में महिलाओं के महत्व पर जोर देने के लिए हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का भी उदाहरण दिया। यजुर्वेद के श्लोक का भी जिक्र करते हुए आदेश में लिखा है कि -‘हे महिला, तुम चुनौतियों को हारने के लायक नहीं हो। तुम सबसे शक्तिशाली चुनौती को हरा सकती हो। दुश्मनों और उनकी सेवाओं को हराओ, तुम्हारी वीरता हजार है।

दुमका के फैमिली कोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती

बता दें कि दुमका के फैमिली कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने पत्नी के भरण-पोषण के लिए 30 हजार और अपने नाबालिग बेटों को 15 हजार रुपये देने का आदेश दिया था। महिला ने दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाया था। जबकि पति का कहना है कि पत्नी उस पर मां और दादी से अलग रहने का दबाव बना रही है। दुमका न्यायालय के फैसले को हाई कोर्ट ने पलटते कहा कि सबूतों के आधार पर यह लग रहा है कि पत्नी अपने पति के साथ इसलिए नहीं रहना चाहती, क्योंकि सास और दादी सास साथ रहती हैं। अदालत ने कहा कि बिना किसी ठोस वजह के अगर पत्नी अलग रहना चाहती है, तो गुजारा भत्ता देने से मना किया जा सकता है।

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लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com