नयी दिल्ली, 11 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी और केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार औपनिवेशिक युग के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेती, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए।
उच्चतम न्यायालय के इस ऐतिहासिक आदेश के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:-
न्यायालय ने गृह मंत्रालय के नौ मई के उस हलफनामे पर गौर किया जिसमें स्वीकार किया गया था कि विभिन्न न्यायविदों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों द्वारा सार्वजनिक रूप से व्यक्त किए गए विचारों में भिन्नता है।
प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने नागरिक स्वतंत्रता के संरक्षण, मानवाधिकारों के सम्मान आदि के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्पष्ट विचारों का जिक्र करने वाले हलफनामे के हिस्से पर गौर करने के बाद केंद्र को कानून पर पुनर्विचार करने की अनुमति दी।
न्यायालय के आदेश में हलफनामे में उल्लिखित प्रधानमंत्री के विचार पर गौर किया गया है कि एक राष्ट्र के रूप में भारत को औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
न्यायालय का यह आदेश भादंसं की धारा 124 ए की कठोरता के वर्तमान सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं होने की पीठ की प्रथम दृष्टया राय के मद्देनजर केंद्र के दृष्टिकोण से सहमत है कि वह अपने उचित मंच द्वारा प्रावधान पर पुनर्विचार करेगा।
आदेश में कहा गया है कि सर्वोच्च अदालत एक तरफ सुरक्षा हितों और राज्य की अखंडता तथा दूसरी ओर लोगों की नागरिक स्वतंत्रता के प्रति जागरूक है।
इसमें अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल का हवाला दिया गया है, जिन्होंने सुनवाई की पिछली तारीख को इस प्रावधान के स्पष्ट दुरुपयोग के उदाहरण दिए थे और ‘हनुमान चालीसा’ के पाठ के मामले में इसे लागू करने का जिक्र किया था।
आदेश में कहा गया है कि उसे उम्मीद है कि पुनर्विचार होने तक सरकारें इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करेंगी।
आदेश में कहा गया है कि 31 मई, 2021 को कुछ याचिकाकर्ताओं को दी गई अंतरिम रोक अगले आदेश तक कायम रहेगी।
आदेश में कहा गया है कि प्रावधान के विचाराधीन रहने तक राज्यों और केंद्र सरकार पर भादंसं की धारा 124ए के तहत कोई प्राथमिकी दर्ज करने, जांच जारी रखने या कोई दंडात्मक कदम उठाने पर रोक रहेगी।
भाषा
अविनाश नरेश
नरेश
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