तिरुपरनकुंड्रम दीप प्रज्वलन प्रकरण में उच्च न्यायालय ने कहा: स्तंभ को लेकर तीन संस्करण हैं
तिरुपरनकुंड्रम दीप प्रज्वलन प्रकरण में उच्च न्यायालय ने कहा: स्तंभ को लेकर तीन संस्करण हैं
मदुरै (तमिलनाडु), 16 दिसंबर (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने मंगलवार को कहा कि इस मामले की सुनवाई के दौरान उसके समक्ष तिरुपरनकुंड्रम पहाड़ी की चोटी पर स्थित पत्थर के स्तंभ (दीपाथून) के संदर्भ में तीन अलग-अलग संस्करण प्रस्तुत किए गए हैं।
न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन ने एक दिसंबर को एक एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए उस आदेश के खिलाफ दायर अपीलों की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें तीन दिसंबर को तिरुपरनकुंड्रम पहाड़ी पर एक दरगाह के पास कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति दी गई थी।
न्यायमूर्ति जयचंद्रन ने मामले में पक्षकार बनने की मांग को लेकर अदालत कक्ष में एक वकील द्वारा हंगामा किये जाने पर कड़ी आपत्ति जतायी।
मामले की सुनवाई शुरू होते ही, न्यायाधीश द्वारा कार्यवाही में हस्तक्षेप न करने के लिए कहे जाने के बावजूद इस वकील ने अदालत कक्ष के अंदर चिल्लाना शुरू कर दिया।
वकील के व्यवहार को गंभीरता से लेते हुए, उच्च न्यायालय ने सीआईएसएफ को उसे अदालत कक्ष से बाहर ले जाने का आदेश दिया। सीआईएसएफ कर्मियों के आने और उसे बाहर निकालने तक, वकील लगातार चिल्लाता रहा।
न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन और न्यायमूर्ति के के रामकृष्णन की खंडपीठ ने अधिवक्ता अधिनियम के तहत उचित कार्रवाई के लिए मामले को तमिलनाडु बार काउंसिल को भेज दिया।
जब आज खंडपीठ ने एक दिसंबर के आदेश के खिलाफ अपीलों की सुनवाई शुरू की, तो वकील अब्दुल मुबीन ने तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की ओर से दलीलें पेश करते हुए कहा, ‘‘ दरगाह और उसके आसपास का इलाका हमारा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, यह (दीपाथून) हमारा है।’’
इस पर न्यायमूर्ति जयचंद्रन ने कहा, ‘‘अब स्तंभ के संदर्भ में तीन संस्करण हैं।’’
वह स्पष्ट रूप से सरकारी अधिकारियों द्वारा पहले प्रस्तुत किए गए इस दावे का जिक्र कर रहे थे कि प्राचीन दीपक स्तंभ एक ‘सर्वेक्षण पत्थर’ है और यह एक ‘जैन संरचना’ है।
वर्ष 1920 के एक आदेश, जिसमें उल्लेख किया गया है कि यह क्षेत्र दरगाह का हिस्सा था, का हवाला देते हुए मुबीन ने कहा, ‘‘यह निष्कर्ष बहुत स्पष्ट है कि नेल्लीथोपे से पहाड़ी की चोटी तक जाने वाली सीढ़ियां मस्जिद की हैं।’’
उन्होंने कहा कि निष्कर्ष में कहा गया कि दरगाह और उसके आसपास की चीजें मुसलमानों की हैं।
उन्होंने कहा,‘‘एकल न्यायाधीश (न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन) ने निष्कर्षों को नजरअंदाज कर दिया। एकल न्यायाधीश का कहना है कि पत्थर के दीपाथून तक पहुंचने के लिए चट्टानों पर चढ़ना पड़ता है। मुझे निर्देश दिया गया है कि मैं यह प्रस्तुत करूं कि वहां केवल दरगाह के रास्ते ही पहुंचा जा सकता है।’’
मुबीन ने दावा किया कि ‘दीपाथून’ शब्द पहली बार गढ़ा गया है और अगर इसे इस नाम से पुकारा जाता है, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
उन्होंने कहा,“आखिरकार, हर धर्म की अपनी-अपनी मान्यताएं होती हैं।”
इस पर न्यायमूर्ति जयचंद्रन ने कहा, “सुविधा के लिए, आप इसे पत्थर का स्तंभ कह सकते हैं।”
मुबीन ने अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए पहाड़ी की तस्वीरें प्रस्तुत कीं और कहा कि 1920 के आदेश के अनुसार पहाड़ी पर स्थित मंडपम भी मुसलमानों का है और पहाड़ी तक दरगाह के माध्यम से ही पहुंचा सकता है।
पीठ ने कहा कि वह इस संबंध में एएसआई का रुख सुनना चाहती है कि बिना उसकी अधिसूचना के पहाड़ियों पर किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
हिंदू श्रद्धालुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एस श्रीराम ने कहा कि यह पहला मामला है, जिसमें यह तर्क उठाया गया है कि एकल न्यायाधीश का आदेश संविधान की शपथ के विरुद्ध है।
अदालत इस मामले में आगे की दलीलें कल सुनेगी।
भाषा राजकुमार दिलीप
दिलीप

Facebook



