वेब डेस्क। भारतीय प्रशासनिक सेवा देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा मानी जाती है, जिसमें उत्तीर्ण करने के लिए परीक्षार्थियों को संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विसेज परीक्षा के तीनों चरणों प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार पास करना होता है। इसी परीक्षा के जरिये देश को मिलते हैं आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और बाकी राजस्व, आयकर जैसे विभागों के उच्च अधिकारी। आज से नहीं, हमेशा से जिला कलेक्टर यानी डीएम का रुतबा कुछ खास रहा है और न सिर्फ रुतबा बल्कि जिम्मेदारियां और अपेक्षाएं भी खास ही होती हैं। अब साल 2017 का आखिरी हफ्ता शुरू हो रहा है तो हम आपको बताने जा रहे हैं देश के उन चुनिंदा शीर्ष आईएएस अधिकारियों के बारे में, जिन्होंने अपनी विशिष्ट उपलब्धियों से इस साल को बना दिया खास। हम आपको बता दें कि आप जो ख़बर पढ़ने जा रहे हैं, उनमें शुमार नामों का क्रम किसी रैंकिंग का प्रतीक नहीं है, हम सिर्फ आपकी सुविधा के लिए इन नामों को क्रमवार रख रहे हैं।
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सबसे पहले बात करते हैं सौरभ कुमार की, जो 2009 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के IAS अफसर हैं। नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा ज़िले के कलेक्टर सौरभ कुमार ने इस तथ्य पर काम किया कि आखिर क्यों स्थानीय युवा नक्सलवाद से प्रभावित हो रहे हैं? उन्होंने पाया कि शिक्षा की कमी और बेरोजगारी इसकी सबसे बड़ी वजह है।
उन्होंने इसके बाद एक पहल की – लंच विद द कलेक्टर। इस अभियान के तहत कलेक्टर और अन्य सीनियर अफसरों ने छात्रों के साथ सीधा संवाद कायम किया। इस पहल ने असर दिखाया और युवाओं व स्थानीय जनता के बीच सौरभ कुमार काफी लोकप्रिय हुए। इससे पहले, नोटबंदी के बाद नक्सल प्रभावित पलनार गांव को कैशलेस बनाने में भी सौरभ कुमार के आइडिया प्रशंसा के केंद्र में रहे, जबकि ये गांव दूरसंचार नेटवर्क से भी लैस नहीं है। सौरभ कुमार की पहल ने उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों एक्सीलेंस के क्षेत्र में पुरस्कार दिलाने में दिलाया।
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अब आपको बताते हैं मध्य प्रदेश कैडर के 2001 बैच के आईएएस अधिकारी पी नरहरि के बारे में। पूरा नाम है परिकिपांडला नरहरि। इन्होंने मध्य प्रदेश में अलग-अलग पदों पर काम करने के दौरान एक से बढ़कर एक नायाब आइडिया दिए। लाडली लक्ष्मी योजना इनकी ही सोच है, जिसमें बेटियों को शिक्षित और आर्थिक सशक्त बनाने की रूपरेखा है। बाद में केंद्र की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ इसी योजना का विस्तृत रूप के तौर पर सामने आया।
ई हेल्थ आइडिया भी पी नरहरि की ही सोच है, जिसके कारण ग्वालियर बैरियर फ्री शहर के रूप में विकसित किया गया। यहां रैम्प और रेलिंग के सहारे बुजुर्गों, दिव्यांगों और महिलाओं को बिना परेशानी के सार्वजनिक स्थलों पर आने-जाने की सुविधा मुहैया कराई गई।
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और इसी कड़ी में अब कीजिए मुलाकात सुरेंद्र कुमार सोलंकी से, जो राजस्थान के डूंगरपुर जिले के कलेक्टर हैं। सोलर लैम्प प्रोजेक्ट के उनके अनोखे आइडिया ने निर्धन और कम शिक्षित आदिवासी महिलाओं को सबसे पिछड़े तबकों की श्रेणी से निकालकर उद्यमी बनाने का काम किया। उनकी इस पहल ने उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों इस साल सम्मानित भी कराया।
कलेक्टर सुरेंद्र कुमार सोलंकी ने राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद और आईआईटी मुंबई के बीच एक समझौता कराया और इन दोनों के तालमेल से महिला स्वयं सेवक समूहों का गठन किया। इन समूहों को प्रशिक्षित कर स्थानीय स्तर पर लैंप्स बनाने, बेचने, मरम्मत करने में सक्षम बनाया। पिछले साल उदयपुर की छाया पारगी नाम की 9 साल की बच्ची को उन्होंने एक अनाथालय से गोद भी लिया है, जिसकी जिंदगी वो अपने वेतन के पैसों से संवारने में जुटे हैं।
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ओडिशा के नुआपाडा जिले की कलेक्टर पोमा टुडु का नाम तो आपने सुना ही होगा, इनकी उपलब्धि टीवी चैनलों पर भी आ चुकी है। पोमा टुडु को जानकारी मिली कि इस जिले के गांवों तक पहुंचने के लिए कंटीली झाड़ियों और जंगलों को पार करके जाना होता है। इस रास्ते में खतरनाक पशुओं से कभी भी सामना हो सकता है। इतना ही नहीं, नक्सल प्रभावित होने के कारण नक्सलियों के चंगुल में भी फंसने का डर होता था।
कलेक्टर पोमा टुडु ने ये महसूस किया कि करीब 90 किलोमीटर की दूरी तय करके सरकारी सुविधाओं के लिए जिला मुख्यालय पहुंचने में ग्रामीणों को कितनी मुश्किल होती होगी, इसलिए उन्होंने खुद ग्रामीणों तक पहुंचने का निर्णय लिया और उसपर अमल किया। पोमा टुडु दिल्ली की लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएट और 2012 बैच की ओडिशा कैडर की आईएएस अफसर हैं। इनकी योजनाओं में इन गांवों तक चिकित्सा सुविधाएं और फास्ट ट्रैक कनेक्टिविटी मुहैया कराना है।
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और अब हम जिस आईएएस अधिकारी के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, उनके नायाब आइडिया ने उन्हें अपने क्षेत्र का नायक बना दिया है। केरल कैडर के 2007 बैच के आईएएस अफसर प्रशांत नायर कोझिकोड के कलेक्टर थे और अब पर्यटन मंत्रालय में सचिव हैं। शहरी इलाकों में भूख की समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने ऑपरेशन सुलेमानी चलाया.
कोझिकोड बीच पर स्वच्छता के लिए उनका अभियान तेरे मेरे बीच में काफी लोकप्रिय और कारगर रहा, वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में सुधार के लिए उनका अभियान यो अपूपा काफी लोकप्रिय हुए। प्रशांत नायर को कलेक्टर ब्रो यानी कलेक्टर भाई कहकर लोग पुकारते हैं। 14 एकड़ के एक तालाब को साफ करने में जन भागीदारी के लिए उन्होंने मुफ्त मालाबार बिरयानी प्लेट नाम से एक प्रोत्साहन योजना भी चलाई।
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आईएएस अधिकारियों की इस फेहरिस्त में और भी कई नाम हैं, लेकिन एक आलेख में सभी की विशिष्ट पहलों को शामिल कर पाना संभव नहीं। ये वो अधिकारी हैं, जो न सिर्फ अपने निर्धारित कर्तव्य और दायित्व निर्वहन में अग्रणी हैं, बल्कि अपनी ड्यूटी से वक्त निकालकर इसी तरह की खास पहलों, नए आइडिया को भी जनहित में आजमाते हैं, जिसके नतीजों ने उन्हें बनाया है खास।
वेब डेस्क, IBC24
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