राजनीतिक हित के लिए राष्ट्रहित को तिलांजलि देना ठीक नहीं : उपराष्ट्रपति धनखड़

राजनीतिक हित के लिए राष्ट्रहित को तिलांजलि देना ठीक नहीं : उपराष्ट्रपति धनखड़

राजनीतिक हित के लिए राष्ट्रहित को तिलांजलि देना ठीक नहीं : उपराष्ट्रपति धनखड़
Modified Date: August 18, 2024 / 05:35 pm IST
Published Date: August 18, 2024 5:35 pm IST

जयपुर, 18 अगस्त (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि राजनीतिक हित के लिए राष्ट्रहित को तिलांजलि देना ठीक नहीं है।

धनखड़ ने कहा कि राजनीतिक रूप से वैचारिक मतभेद होना प्रजातंत्र की खूबी है, अलग-अलग विचार रखना प्रजातंत्र के गुलदस्ते की महक है, पर यह तब तक ही ठीक है जब राष्ट्रहित को तिलांजलि नहीं दी जाए।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि नहीं रखेंगे तो जो यह राजनीतिक मतभेद हैं, यह राष्ट्रविरोधी बन जाते हैं।

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उपराष्ट्रपति ने रविवार को यहां अंगदान करने वाले परिवारों को सम्मानित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही।

उन्होंने कहा कि लोगों को ऐसे लोगों को समझना चाहिए जिनके लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि नहीं है और जो राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों को इससे ऊपर रखते हैं।

धनखड़ ने कहा, ‘‘और यदि वे अब भी कायम हैं, तो मैं सभी से इन ताकतों को बेअसर करने का आग्रह करता हूं जो इस राष्ट्र के विकास के लिए हानिकारक हैं।’’

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राजनीति में लोकतंत्र का अपना महत्व है, अलग-अलग विचार रखना लोकतंत्र के गुलदस्ते की खुशबू है, लेकिन यह तभी तक है जब तक राष्ट्रीय हित की बलि न दी जाए। उन्होंने कहा कि किसी भी परिस्थिति में राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ‘भारतीयता’ हमारी पहचान है।

उन्होंने कहा कि भारत में जो विकास हो रहा है और उसकी गति ‘अकल्पनीय’ है, जिसके बारे में आज की पीढ़ी को कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने नयी पीढ़ी से अपील की कि वे संविधान दिवस को इस रूप में देखें कि संविधान पर कब खतरा आया।

उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि ‘आपातकाल’ का काला अध्याय हाल के चुनावों के साथ समाप्त हो गया।

धनखड़ ने कहा, ‘‘नहीं, हम ‘आपातकाल’ के अत्याचारों को भूल नहीं सकते और इसीलिए भारत सरकार ने ‘संविधान हत्या दिवस’मनाने की पहल की है ताकि हमारी नयी पीढ़ी को आगाह किया जा सके कि उन्हें पता होना चाहिए कि एक ऐसा भी कालखंड था जब आपके पास कोई भी मौलिक अधिकार नहीं थे।’’

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि अंगदान मानव स्वभाव का सर्वोच्च नैतिक उदाहरण है और नागरिकों को इसके प्रति सचेत प्रयास करने चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अंगदान को व्यावसायिक लाभ के लिए कमजोर वर्ग के शोषण का साधन नहीं बनने दिया जा सकता।

इस कार्यक्रम का आयोजन जैन सोशल ग्रुप्स (जेएसजी) केंद्रीय संस्थान, जयपुर और दधीचि देह दान समिति, दिल्ली द्वारा किया गया था।

भाषा

कुंज, रवि कांत रवि कांत


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