जम्मू-कश्मीर: पाकिस्तानी आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए सेना ने शीतकालीन अभियान तेज किए
जम्मू-कश्मीर: पाकिस्तानी आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए सेना ने शीतकालीन अभियान तेज किए
नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ और डोडा जिलों में आतंकवाद विरोधी अभियान तेज कर दिए हैं, ताकि भीषण सर्दी का फायदा उठाकर छिपने की कोशिश कर रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों का पता लगाया जा सके और उन्हें काबू किया जा सके। सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
सूत्रों ने कहा कि कश्मीर घाटी में 21 दिसंबर से 31 जनवरी के बीच 40 दिवसीय ‘चिल्लई कलां’ (सर्दी का सबसे कठोर दौर) के दौरान आम तौर पर आतंकवादी गतिविधियों में “अस्थाई ठहराव” दर्ज किया जाता है, क्योंकि भारी बर्फबारी के कारण पहाड़ी इलाके कट जाते हैं और संचार मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
हालांकि, उन्होंने कहा कि इस बार सर्दी के मौसम में सेना और सुरक्षाबलों के अभियानगत दृष्टिकोण में एक “निर्णायक बदलाव” आया है।
सूत्रों ने बताया कि सेना ने “सक्रिय शीतकालीन रणनीति” अपनाई है और बर्फ से ढके इलाकों में काफी भीतर तक अस्थायी शिविर एवं निगरानी चौकियां स्थापित की हैं, ताकि आतंकवादियों को ठंड का फायदा उठाकर इन निर्जन स्थानों पर छिपने का मौका न मिले।
सूत्रों के मुताबिक, सेना के गश्ती दल शून्य से नीचे तापमान और सीमित दृश्यता में काम करते हुए अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों, घाटियों और वन क्षेत्रों में नियमित रूप से गश्त लगा रहे हैं, ताकि “आतंकवादियों को किसी भी प्रकार का आश्रय न मिल सके।”
विशेषज्ञों के अनुसार, सेना के रुख में यह बदलाव आतंकवाद विरोधी रणनीति में एक बड़े परिवर्तन का संकेत है, जो मौसम या भूभाग की परवाह किए बिना, सेना की अनुकूलन क्षमता और परिचालन गति को बनाए रखने के उसके संकल्प को रेखांकित करता है।
रक्षा सूत्रों ने बताया कि विभिन्न खुफिया एजेंसियों ने जम्मू क्षेत्र में वर्तमान में “30 से 35 पाकिस्तानी आतंकवादियों” की मौजूदगी का अनुमान जताया है।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में जुटाई गई खुफिया जानकारी से पता चलता है कि सफल आतंकवाद विरोधी अभियानों के कारण ये पाकिस्तानी आतंकवादी, क्षेत्र के अधिक और मध्य ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में और भी गहराई में चले गए हैं, जहां फिलहाल कोई मानव आबादी नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक, माना जा रहा है कि ये आतंकवादी भीषण सर्दी में सुरक्षाबलों की नजरों से बचने और उनके साथ मुठभेड़ की आशंका टालने के लिए अस्थायी ठिकाने तलाश रहे हैं।
खुफिया रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि विभिन्न आतंकवादी समूहों के ये बचे हुए सदस्य स्थानीय लोगों और जमीनी स्तर पर काम करने वाले कारिंदों के बीच समर्थन में भारी गिरावट के बीच आश्रय और खाद्य आपूर्ति के लिए स्थानीय ग्रामीणों को डराने-धमकाने की कोशिश कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, निचले इलाकों में स्थानीय समर्थन में कमी और लगातार सुरक्षा निगरानी के कारण उन्हें अलग-थलग पड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिससे उनके फिर से संगठित होने या समन्वित हमलों की साजिश रचने की क्षमता और भी सीमित हो गई है।
सूत्रों ने कहा कि सेना ने किश्तवाड़ और डोडा जिलों में आतंकवाद विरोधी अभियान तेज कर दिए हैं।
उन्होंने कहा कि जमा देने वाली ठंड, दुर्गम भूभाग और भारी बर्फबारी से बेपरवाह सेना की इकाइयों ने कठोर मौसम का फायदा उठाकर छिपने की कोशिश कर रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों का पता लगाने और उन्हें काबू करने के लिए बर्फ से ढके अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपनी अभियानगत पहुंच का विस्तार किया है।
सूत्रों के मुताबिक, अभियानों के लिए एकीकृत दृष्टिकोण इस साल आतंकवाद विरोधी रणनीति की एक प्रमुख विशेषता है।
उन्होंने कहा कि सेना नागरिक प्रशासन, जम्मू-कश्मीर पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), विशेष अभियान समूह (एसओजी), वन रक्षकों और ग्राम रक्षा रक्षकों (वीडीजी) सहित कई सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को शामिल करते हुए एक समन्वित प्रयास का नेतृत्व कर रही है।
सूत्रों के अनुसार, यह अंतर-एजेंसी सहयोग खुफिया जानकारी का निर्बाध आदान-प्रदान, संसाधनों का अनुकूलन और अभियानों का बेहतर निष्पादन सुनिश्चित करता है।
उन्होंने कहा कि आतंकवादियों की गतिविधियों और छिपने के तरीकों की “सटीक तस्वीर” तैयार करने के लिए कई एजेंसियों से प्राप्त खुफिया जानकारी का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाता है।
सूत्रों ने बताया कि खुफिया जानकारी की पुष्टि हो जाने के बाद समन्वित संयुक्त अभियानों की योजना बनाई जाती है और उन्हें शुरू किया जाता है, जिससे सामरिक सटीकता के साथ अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित होता है।
उन्होंने बताया कि जमीनी इकाइयों और खुफिया ढांचों के बीच तालमेल ने प्रतिक्रिया समय में कमी लाई है, क्योंकि सुरक्षा बलों को कार्रवाई योग्य जानकारी मिलते ही तुरंत कदम उठाने में मदद मिलती है।
एक रक्षा सूत्र ने कहा कि इस सर्दी में सेना और अन्य बलों का मुख्य ध्यान दो बातों पर है : ज्ञात क्षेत्रों के भीतर बचे हुए आतंकवादी ठिकानों को खत्म करना और यह सुनिश्चित करना कि आतंकवादी अधिक ऊंचाई वाले दुर्गम इलाकों तक ही सीमित रहें।
सूत्र ने कहा कि यह नियंत्रण रणनीति न केवल आतंकवादियों को आबादी वाले क्षेत्रों में घुसपैठ करने या फिर से संगठित होने से रोकती है, बल्कि उनके रसद और संचार माध्यमों को भी काफी हद तक बाधित करती है, जिससे उनकी परिचालन क्षमता कम हो जाती है।
सूत्रों ने बताया कि सेना ने कई प्रमुख क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रशिक्षित शीतकालीन युद्ध उप-इकाइयों को भी तैनात किया है।
उन्होंने बताया कि इन इकाइयों में शामिल जवान अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में रहने, बर्फ से ढके इलाकों में गश्त लगाने, हिमस्खलन की स्थिति में त्वरित कार्रवाई करने में निपुण हैं।
सूत्रों के अनुसार, आधुनिक प्रौद्यिगिकियां इन अभियानों को गति देने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
उन्होंने बताया कि आतंकवादियों की गतिविधियों का पता लगाने और संभावित आवागमन मार्गों को सटीक रूप से चिह्नित करने के लिए ड्रोन आधारित टोही से लेकर जमीनी सेंसर और निगरानी रडार तक विभिन्न उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
भाषा पारुल माधव
माधव

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