करीब बारह वर्षों से कोमा में पड़े व्यक्ति के अभिभावकों से मुलाकात करेंगे न्यायाधीश
करीब बारह वर्षों से कोमा में पड़े व्यक्ति के अभिभावकों से मुलाकात करेंगे न्यायाधीश
नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 31-वर्षीय उस व्यक्ति के अभिभावकों से मिलने की बृहस्पतिवार को इच्छा जतायी, जो 12 वर्षों से अधिक समय से कोमा में है। शीर्ष अदालत व्यक्ति के पिता की उस याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें उन्होंने कृत्रिम जीवन रक्षक प्रणाली को हटाकर अपने पुत्र के लिए ‘निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु’ का अनुरोध किया है।
वर्ष 2013 में एक इमारत की चौथी मंजिल से गिरने के बाद उस व्यक्ति के सिर में चोट लगी थी। वह अब 12 साल से अधिक समय से कृत्रिम जीवन रक्षक प्रणाली पर है।
‘निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु’ उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें किसी मरीज का जीवन बचाने के लिए आवश्यक जीवन रक्षक उपकरण हटाकर या उपचार रोककर वह स्थिति पैदा की जाती है, जिससे उसके प्राण स्वाभाविक ढंग से निकल सकें।
न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने हरीश राणा के चिकित्सकीय इतिहास के संबंध में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के चिकित्सकों के एक द्वितीयक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का अवलोकन किया और टिप्पणी की कि यह एक ‘दुखद’ रिपोर्ट है।
पीठ ने राणा के अभिभावकों के साथ मुलाकात के लिए 13 जनवरी को अपराह्न तीन बजे का समय निर्धारित करते हुए कहा, ‘‘यह बहुत दुखद रिपोर्ट है। हम इस बच्चे को इस स्थिति में नहीं रख सकते।’’
उच्चतम न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसे अशोक राणा ने दायर किया था, जिसमें उन्होंने अपने पुत्र के लिए इस्तेमाल किये जा रहे जीवन रक्षक उपकरण को हटाने के वास्ते न्यायिक हस्तक्षेप का अनुरोध किया है।
प्राथमिक मेडिकल बोर्ड ने मरीज की स्थिति की पड़ताल करने के बाद कहा था कि उसके ठीक होने की संभावना न के बराबर है।
उच्चतम न्यायालय ने 11 दिसंबर को कहा था कि प्राथमिक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, व्यक्ति की स्थिति दयनीय है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2023 में जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, अचेत अवस्था में किसी मरीज के कृत्रिम जीवन रक्षक प्रणाली को हटाने के लिए विशेषज्ञ राय प्राप्त करने हेतु एक प्राथमिक और एक द्वितीयक मेडिकल बोर्ड का गठन करना अनिवार्य होगा।
उच्चतम न्यायालय ने राणा के लिए ‘निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु’ की संभावना तलाशने के लिए गत 26 नवंबर को नोएडा सेक्टर 39 स्थित जिला अस्पताल को एक प्राथमिक बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने कहा था कि मरीज की हालत बहुत खराब है।
न्यायालय ने जिला अस्पताल से कहा था कि वह राणा के पिता द्वारा दायर याचिका पर दो सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करे, जिसमें उन्होंने अपने पुत्र के लिए ‘निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु’ का अनुरोध किया था।
पीठ ने निर्देश दिया था, ‘‘हम चाहते हैं कि प्राथमिक बोर्ड हमें एक रिपोर्ट दे कि जीवन रक्षक उपचार रोका जा सकता है। प्राथमिक बोर्ड अपनी रिपोर्ट जल्द से जल्द पेश करे और एक बार जब यह हमारे सामने आ जाएगा, तो हम आगे के आदेश पारित करने की दिशा में बढ़ेंगे। यह प्रक्रिया दो सप्ताह के भीतर पूरी हो जानी चाहिए।’
यह पिछले दो सालों में दूसरी बार है जब याचिकाकर्ताओं ने अपने पुत्र के लिए ‘निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु’ का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
पिछले साल आठ नवंबर को, शीर्ष अदालत ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट पर गौर किया था, जिसमें यह सुझाव दिया गया था कि मरीज की देखभाल उत्तर प्रदेश सरकार की सहायता से घर पर ही की जाएगी और चिकित्सक तथा एक फिजियोथेरेपिस्ट उसकी नियमित जांच करेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि यदि घर पर देखभाल संभव न हो तो व्यक्ति को उसकी स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उचित चिकित्सा देखभाल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नोएडा के जिला अस्पताल में स्थानांतरित किया जाए।
भाषा अमित सुरेश
सुरेश

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