न्यायिक अधिकारी को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता : अदालत

न्यायिक अधिकारी को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता : अदालत

न्यायिक अधिकारी को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता : अदालत
Modified Date: January 25, 2024 / 10:35 pm IST
Published Date: January 25, 2024 10:35 pm IST

नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि महज न्यायाधीश होने के नाते किसी न्यायिक अधिकारी के मौलिक अधिकार समाप्त नहीं हो जाते, जो अन्य नागरिकों को उपलब्ध हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि भले ही किसी मामले में शिकायतकर्ता किसी न्यायिक अधिकारी का रिश्तेदार हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि किसी आपराधिक मामले में खड़े होने, लड़ने और अदालतों से न्याय मांगने के लिए उसके पास दूसरों की तुलना में कम अधिकार हैं।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, ‘यह न्याय का मजाक होगा, अगर पीड़िता अपने लिए न्याय पाने में विफल रहती है या उसे न्याय पाने के समान अवसरों से इसलिए वंचित कर दिया जाता है कि उसका एक रिश्तेदार न्यायिक अधिकारी है और दूसरों को न्याय दे रहा है।’

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अदालत ने मोहित पिलानिया की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की यह टिप्पणी की, जिस पर एक महिला और उसके परिवार को धोखा देकर उसकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कराने का आरोप है, जो पहले से ही शादीशुदा है। पीड़िता एक न्यायिक अधिकारी की बहन है।

महिला ने एक अन्य व्यक्ति आरव उर्फ रवि गौतम के खिलाफ भी भारतीय दंड संहिता के तहत धोखाधड़ी, बलात्कार, आपराधिक षडयंत्र जैसे अन्य अपराधों के लिए मामला दर्ज कराया है। महिला के अनुसार रवि गौतम ने यह बताए बिना उससे शादी की थी कि वह पहले से शादीशुदा है।

उच्च न्यायालय ने पिलानिया की इस दलील पर ”सख्त आपत्ति” जताई कि चूंकि शिकायतकर्ता का भाई न्यायिक अधिकारी है, इसलिए उसके प्रभाव के कारण प्राथमिकी दर्ज की गई और उसे जमानत नहीं दी जा रही है।

अदालत ने इस पर भी ‘आश्चर्य’ जताया कि निचली अदालत द्वारा चेतावनी दिए जाने के बावजूद, व्यक्ति के वकील ने शिकायतकर्ता, उसके भाई और उसके पदनाम और तैनाती आदि का खुलासा करते हुए फिर से उच्च न्यायालय में दस्तावेज दायर किए हैं, जो महिला की पहचान का खुलासा किए जाने के समान है।

भाषा अविनाश दिलीप

दिलीप


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