अयोध्या विवाद, निजता का अधिकार जैसे अहम मुकदमों के फैसले का हिस्सा रहे हैं न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ |

अयोध्या विवाद, निजता का अधिकार जैसे अहम मुकदमों के फैसले का हिस्सा रहे हैं न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

अयोध्या विवाद, निजता का अधिकार जैसे अहम मुकदमों के फैसले का हिस्सा रहे हैं न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:59 PM IST, Published Date : November 9, 2022/11:35 am IST

(तस्वीरों के साथ)

नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के तौर पर बुधवार को शपथ ग्रहण करने वाले न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ अयोध्या विवाद, निजता का अधिकार जैसे अहम मुकदमों में फैसले देने वाली पीठ का हिस्सा रहे हैं।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ देश में सबसे लंबे समय तक सीजेआई रहे न्यायमूर्ति वाई. वी. चंद्रचूड़ के बेटे हैं। उनके पिता 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख रहे थे। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सात दशक से अधिक लंबे इतिहास में यह पहला मौका है जब पिता-पुत्र दोनों ही इस पद पर आसीन हुए।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाई।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए इस पद पर रहेंगे। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं। उन्होंने न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित का स्थान लिया जिन्होंने 11 अक्टूबर को उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाए जाने की सिफारिश की थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें 17 अक्टूबर को अगला सीजेआई नियुक्त किया था।

न्यायमूर्ति ललित का कार्यकाल आठ नवंबर को पूरा हो गया, वह केवल 74 दिन के लिए इस पद पर रहे।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ। वह 13 मई 2016 को शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किए गए।

‘असहमति को लोकतंत्र के सेफ्टी वाल्व’ के रूप में देखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कई संविधान पीठ और ऐतिहासिक फैसले देने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठों का हिस्सा रहे हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने व्यभिचार और निजता के अधिकार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने पिता वाई. वी. चंद्रचूड़ के फैसले को पलटने में कोई संकोच नहीं किया।

अयोध्या भूमि विवाद, आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमला मुद्दा, सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर फैसला करने वाली पीठ का वह हिस्सा रहे।

काम के प्रति दीवानगी के लिए पहचाने जाने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 30 सितंबर, 2022 को एक पीठ की अध्यक्षता की, जो दशहरे की छुट्टियों की शुरुआत से पहले 75 मामलों की सुनवाई करने के लिए शीर्ष अदालत के नियमित कामकाजी समय से लगभग पांच घंटे अधिक (रात 9:10 बजे) तक बैठी थी।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 29 मार्च 2000 से 31 अक्टूबर 2013 तक बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे। उसके बाद उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को जून 1998 में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया और वह उसी वर्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए।

राष्ट्रीय राजधानी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के बाद उन्होंने कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी किया और अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

भाषा निहारिका नरेश

नरेश

 

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