Lack of hygiene in schools: पीरियड और स्वच्छता प्रोडक्ट की कमी के कारण स्कूल नहीं आती लड़कियां, इस रिपोर्ट में हुआ खुलासा |

Lack of hygiene in schools: पीरियड और स्वच्छता प्रोडक्ट की कमी के कारण स्कूल नहीं आती लड़कियां, इस रिपोर्ट में हुआ खुलासा

स्कूलों में स्वच्छता, मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों की कमी लड़कियों की अनुपस्थिति का प्रमुख कारण

Edited By :   Modified Date:  December 11, 2023 / 10:19 PM IST, Published Date : December 11, 2023/8:26 pm IST

Lack of hygiene in schools: नयी दिल्ली, 11 दिसंबर । भारत में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन पर सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि लड़कियां स्कूल के शौचालयों में पानी, साबुन, स्वच्छता की कमी और दरवाजे नहीं होने जैसे प्रमुख कारणों की वजह से मासिक धर्म के दौरान का इनका उपयोग करने से डरती हैं। गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) सुलभ इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल के शौचालयों से संबंधित यह डर मासिक धर्म चक्र के दौरान लड़कियों को स्कूलों से अनुपस्थिति होने के लिए मजबूर करता है।

रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘हमारे निष्कर्षों से यह पता चला है कि घर से स्कूल की दूरी लड़कियों के लिए स्कूल छोड़ने में उतनी बड़ी बाधा नहीं है, जितना कि मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन संबंधी सुविधाओं की कमी है। इस दौरान लड़कियों को मजबूरी में घर पर ही रहना पड़ता है।’’

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सुलभ इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘यदि स्कूली लड़कियों को पैड जैसी नियमित मासिक धर्म स्वच्छता सामग्री नहीं मिलती है, तो उन्हें स्कूल जाने की बजाय घर पर रहना अधिक सुरक्षित लगता है। यह मजबूरी में चुना गया एक ऐसा विकल्प है जब लड़कियां स्कूलों में स्वच्छता और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन सुविधाओं की निराशाजनक रूप से कमी के कारण अपने मासिक धर्म का प्रबंधन करने के लिए अपने घर में उपलब्ध गोपनीयता और सुरक्षा का चयन करती हैं।’’

सर्वेक्षण के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि लड़कियां शौचालयों में पानी, साबुन, स्वच्छता की कमी के साथ-साथ दरवाजे, नल और यहां तक कि कूड़ेदान के उपलब्ध नहीं होने के कारण मासिक धर्म के दौरान स्कूल के शौचालयों का उपयोग करने से डरती हैं। सुलभ इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, इस कारण मासिक धर्म चक्र से गुजरने वाली लड़कियां एक वर्ष में करीब 60 दिन स्कूलों से अनुपस्थित रहती हैं अथवा असुविधाओं का सामना करते हुए स्कूल जाती हैं।

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एनजीओ के मुताबिक, यह सर्वेक्षण असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और तमिलनाडु के 14 जिलों में किया गया तथा इसमें देश के दूरदराज के इलाकों में विभिन्न जातियों को कवर करने वाले 22 प्रखंडों और 84 गांवों की 4,839 महिलाओं तथा लड़कियों से बात की गई।