लिव-इन में रह रहे वयस्क जीवन की सुरक्षा के हकदार : उच्च न्यायालय

लिव-इन में रह रहे वयस्क जीवन की सुरक्षा के हकदार : उच्च न्यायालय

लिव-इन में रह रहे वयस्क जीवन की सुरक्षा के हकदार : उच्च न्यायालय
Modified Date: December 18, 2025 / 10:35 pm IST
Published Date: December 18, 2025 10:35 pm IST

प्रयागराज, 18 दिसंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लिव-इन संबंध में रह रहे 12 जोड़ों को पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है जिन्होंने अपने परिवारों से खतरा होने की बात कहते हुए पुलिस से पर्याप्त सुरक्षा की गुहार लगाई थी।

न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह ने कहा कि लिव इन में रह रहे वयस्क सरकार से अपने जीवन और निजी स्वतंत्रता की सुरक्षा के हकदार हैं।

उक्त व्यवस्था देते हुए अदालत ने पाया कि बड़ी संख्या में इस तरह के मामले अदालत में आ रहे हैं जिसमें जोड़ों ने जिला पुलिस से संपर्क किया, लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं मिली जिससे वे अदालत आने के लिए विवश हुए।

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इस सवाल पर कि क्या औपचारिक विवाह की अनुपस्थिति संवैधानिक सुरक्षा प्रभावित करती है, अदालत ने कहा, ‘‘मानव जीवन के अधिकार को कहीं ऊंचे स्तर पर लिया जाना चाहिए, भले ही वह नागरिक बालिग हो या नाबालिग, शादीशुदा हो या अविवाहित। महज इसलिए कि याचिकाकर्ताओं ने विवाह नहीं किया, वे अपने मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं हो जाएंगे।”

अदालत ने कहा कि सामाजिक और व्यक्तिगत नजरिये से नैतिकता भिन्न हो सकती है, लेकिन इन मतभेदों से वैधता प्रभावित नहीं होती। उसने कहा कि कानून की नजर में लिव-इन संबंध पर रोक नहीं है, भले ही भारतीय समाज के कई वर्ग अब भी इसको लेकर असहज हैं।

अदालत ने कहा कि एक बार व्यक्ति बालिग हो जाता है तो वह कहां और किसके साथ रहे, यह निर्णय करने के लिए स्वतंत्र है। यदि उसने अपना साथी चुन लिया है तो कोई अन्य व्यक्ति चाहे वह परिवार का सदस्य हो, आपत्ति नहीं कर सकता और उनके शांतिपूर्व जीवन में बाधा खड़ी नहीं कर सकता।

अदालत ने कहा, “संवैधानिक दायित्वों के तहत प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए राज्य सरकार बाध्य है।”

उसने कहा, “यहां याचिकाकर्ता बालिग हैं और बगैर वैवाहिक बंधन के साथ रहने का निर्णय किया है और उनका निर्णय सही या गलत है, यह तय करना अदालत का कार्य नहीं है। यदि इन याचिकाकर्ताओं ने कोई अपराध नहीं किया है तो अदालत को उन्हें सुरक्षा देने का अनुरोध स्वीकार करने से मना करने का कोई कारण नहीं नजर आता।”

इस प्रकार से अदालत ने सभी 12 याचिकाएं स्वीकार कर लीं और पुलिस को निर्देश जारी कर पूछा कि यदि भविष्य में इन लोगों को खतरा का सामना करना पड़ता है तो पुलिस कैसे निपटेगी।

भाषा सं राजेंद्र शफीक

शफीक


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