अप्रचलित और पुराने कानूनों को निरस्त करने वाले विधेयक को लोकसभा की मंजूरी

अप्रचलित और पुराने कानूनों को निरस्त करने वाले विधेयक को लोकसभा की मंजूरी

अप्रचलित और पुराने कानूनों को निरस्त करने वाले विधेयक को लोकसभा की मंजूरी
Modified Date: December 16, 2025 / 04:56 pm IST
Published Date: December 16, 2025 4:56 pm IST

नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) अप्रचलित और पुराने हो चुके 71 कानूनों को समाप्त करने या संशोधित करने के प्रावधान वाले ‘निरसन और संशोधन विधेयक, 2025’ को लोकसभा ने मंगलवार को मंजूरी दे दी।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को लेकर कुछ विपक्षी सदस्यों की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा, ‘‘यह विधेयक जल्दबाजी में नहीं, सोच-विचार करके लाया गया है और विकसित भारत की दिशा में बढ़ता कदम है।’’

उन्होंने कहा कि 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लगातार कानून बनाए जा रहे हैं, अनावश्यक कानूनों को निरस्त किया जा रहा है तथा कुछ कानूनों में आवश्यकतानुसार संशोधन किया जा रहा है।

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मेघवाल ने कहा कि उक्त विधेयक गुलामी के अंशों से मुक्ति पाने, विकसित भारत, विरासत पर गर्व करने, एकजुट रहने और कर्तव्य भाव को बढ़ाने के प्रधानमंत्री मोदी के ‘पंच प्रण’ के तहत लाया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे शासनकाल में अगर हमें लगेगा कि हमें लोगों को व्यापार सुगमता के लिए प्रोत्साहित करना है, लोगों को समान अधिकार देने हैं, नागरिकों को सुविधा देनी है तो निश्चित रूप से मोदी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ेगी।’’

मेघवाल के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी प्रदान की।

उन्होंने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से छह अधिनियमों को निरस्त किया जाएगा और 65 में संशोधन किया जाएगा।

कानून मंत्री ने कहा कि विपक्ष के कुछ सदस्यों ने कहा कि कानूनों को क्यों समाप्त किया जा रहा है और क्या सरकार जल्दबाजी में कानून लेकर आती है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं कांग्रेस सांसदों से पूछना चाहता हूं कि संप्रग-एक और दो सरकारों में 2004 से 2014 के बीच या तो वे काम करना भूल गए या किसी और काम में लग गए, इसलिए इन्होंने एक भी कानून को निरस्त नहीं किया। इससे पहले तो कानून निरस्त होते रहे। यह भी एक विधायी कामकाज है।’’

मेघवाल ने कहा कि मोदी सरकार ने सुधारों की प्रक्रिया में मई 2014 से अब तक 1,577 अप्रचलित कानूनों को निरस्त किया है, जिनमें 1,562 पूरी तरह समाप्त किये जा चुके हैं और 15 को संशोधित करके लागू किया।

उन्होंने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में किये जा रहे एक संशोधन पर कांग्रेस के एक सांसद की आपत्ति का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘इस अधिनियम में अनजाने में हुई गलती से ‘प्रिबेंशन’ (रोकथाम) शब्द हो गया, उसकी जगह हम ‘प्रेपरेशन’ (तैयारी करना) शब्द ला रहे हैं। सामान्य सा विधेयक है और हम केवल सुधार कर रहे हैं। इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।’’

मेघवाल ने भारतीय उत्तराधिकार कानून, 1925 में संशोधन का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें प्रावधान है कि कलकत्ता, मद्रास और बंबई के न्याय क्षेत्राधिकार की कोई वसीयत होगी तो उसमें हिंदू, सिख, जैन, बौध और पारसी समुदाय के लोगों को प्रशासन पत्र (प्रोबेट) लेना होगा, और मुस्लिम करेगा तो नहीं लेना होगा।

कानून मंत्री ने कहा, ‘‘यह भेदभावपूर्ण प्रावधान था जिसे हम हटा रहे हैं। संविधान कहता है कि जाति, धर्म के आधार पर भेद नहीं करेंगे। कोई भेदभावपूर्ण प्रवधान है तो नरेन्द्र मोदी जी के शासन में किताबों (कानून की) में नहीं रह सकता।’’

इससे पहले विधेयक को चर्चा और पारित किए जाने के मेघवाल ने कहा कि सरकार से समाज हित में कानून बनाने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन एक समय आता है जब ऐसा लगता है कि उस कानून की उपयोगिता नहीं है या वह अपनी प्रासंगिकता खो चुका है तो ऐसे कानूनों का निरसन किया जाना चाहिए।

भाषा

वैभव सुरेश

सुरेश


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