चेन्नई, 30 अप्रैल (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें एक आरोपी को पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोपों से बरी कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने उसे 10 साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई।
हाल में पारित एक आदेश में न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन ने राज्य सरकार द्वारा दायर उस अपील को मंजूरी दी, जिसमें नीलगिरि जिले के उधगमंडलम के विशेष न्यायाधीश, मगलिर नीधिमंद्रम के 30 नवंबर, 2022 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
अभियोजन पक्ष का कहना है कि आरोपी और पीड़िता पड़ोसी थे और उनमें प्रेम संबंध हो गए थे।
अभियोजन पक्ष का कहना है कि पीड़िता को डर था कि उसके माता-पिता उसकी शादी किसी और से कर देंगे, इसलिए उसने आरोपी से संपर्क किया, जो उसे अपने रिश्तेदारों के यहां ले गया और कुछ दिन तक वहीं रहा।
अभियोजन पक्ष के अनुसार जब आरोपी को पता चला कि लड़की के माता-पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी है तो वह उसे वापस घर ले आया।
अभियोजन पक्ष ने बताया कि आरोपी ने नाबालिग लड़की (जो उस समय 17 साल की थी) के साथ यौन संबंध बनाए थे, इसलिए पुलिस ने पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया।
निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए न्यायमूर्ति वेलमुरुगन ने कहा कि यह अदालत, एक अपीलीय अदालत होने के नाते, अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत समस्त साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए तथा पॉक्सो अधिनियम के दायरे और उद्देश्य और पीड़िता के बयान पर विचार करते हुए यह पाती है कि आरोपी ने पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध किया है।
न्यायाधीश ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत अपराध किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि पूरे समाज के खिलाफ है।
भाषा
देवेंद्र अविनाश
अविनाश
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