Maulana Saad lockdown case, image source: ANI
नई दिल्ली: Maulana Saad lockdown case, दिल्ली पुलिस की ताज़ा जांच रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान भड़काऊ भाषण देने और कोविड फैलाने के आरोपों में फंसे तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। पुलिस ने अदालत को बताया कि मौलाना साद के लैपटॉप से मिले भाषणों की जांच की गई, लेकिन इनमें कोई भड़काऊ या विवादित सामग्री नहीं पाई गई।
मार्च 2020 में निजामुद्दीन स्थित मरकज़ में तबलीगी जमात का आयोजन हुआ था, जिसमें देश-विदेश से लोग शामिल हुए थे। बाद में कुछ प्रतिभागियों के कोविड पॉजिटिव पाए जाने पर मौलाना साद और जमातियों पर महामारी फैलाने, लॉकडाउन तोड़ने और लोगों को उकसाने के आरोप लगाए गए। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक ऑडियो को भी पुलिस ने सबूत के तौर पर पेश किया था। इसी आधार पर मौलाना साद और 952 विदेशी जमातियों पर मुकदमा दर्ज हुआ था।
Maulana Saad, दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही कई केस रद्द कर चुकी है। जुलाई 2025 में कोर्ट ने 70 जमातियों के खिलाफ FIR और चार्जशीट खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा था कि ये लोग लॉकडाउन की वजह से मरकज़ में फंसे थे और बाहर निकलना भी नियमों के खिलाफ होता। किसी के खिलाफ कोविड फैलाने या प्रशासन से दुर्व्यवहार करने का कोई सबूत नहीं मिला था।
अब पुलिस की फाइनल रिपोर्ट में भी साफ हो गया है कि मौलाना साद के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने या लोगों को कोविड नियम तोड़ने के लिए उकसाने का कोई प्रमाण नहीं है।
आप प्रवक्ता मजीद अली ने कहा, “तबलीगी जमात ने ही सबसे पहले कोविड मरीजों के लिए प्लाज़्मा डोनेट किया था। मीडिया और पुलिस ने उन्हें बदनाम किया, अब माफी मांगनी चाहिए।”
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा, “मौलाना साद और जमात को बेवजह परेशान किया गया। उन्हें क्लीन चिट मिलना खुशी की बात है। जिन लोगों ने बदनाम किया, उन्हें माफी मांगनी चाहिए।”