MIG-21 Crash: बस अब और नहीं! 60 साल में 200 पायलट शहीद, बेड़े से बाहर होगा ‘उड़ता ताबूत’
एक स्क्वाड्रन को इसी साल सितंबर में हटाए जाने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि वायुसेना अगले पांच सालों में मिग.29 लड़ाकू विमानों के तीन स्क्वाड्रन को भी चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना बना रही है।200 pilots martyred in 60 years, 'flying coffin' will be out of the fleet
MIG-21 Crash : 200 pilots martyred in 60 years
MIG-21 Crash , 200 pilots martyred in 60 years: नई दिल्ली। 60 साल में भले ही उसने जंगों में बखूबी साथ दिया, लेकिन देश के 200 पायलट उसकी धोखेबाजी के भी शिकार हो गए। ताजा मामला बाड़मेर का है, जिसमें दो पायलट शहीद हुए। वह बदनाम इतना हुआ कि उसे ‘उड़ता ताबूत’ कहा जाने लगा। हर नए हादसे के बाद यही सवाल उठता कि आखिर कब तक? लेकिन अब वह तारीख आ चुकी है। मिग-21 विदा होगा। भारतीय वायुसेना ने अपने बेड़े में बचे चार मिग.21 लड़ाकू स्क्वाड्रन को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए अगले तीन सालों की समयसीमा तय कर दी है।>>*IBC24 News Channel के WHATSAPP ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां CLICK करें*<<
इस गतिविधि के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों ने शुक्रवार को बताया कि इनमें से एक स्क्वाड्रन को इसी साल सितंबर में हटाए जाने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि वायुसेना अगले पांच सालों में मिग.29 लड़ाकू विमानों के तीन स्क्वाड्रन को भी चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना बना रही है।
मिग.21 की दुर्घटना से कोई संबंध नहीं
MIG-21 Crash , 200 pilots martyred in 60 years: इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सोवियत मूल के विमान बेड़े को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना वायुसेना के आधुनिकीकरण अभियान का हिस्सा है और इस कदम का राजस्थान के बाड़मेर में हुई मिग.21 की दुर्घटना से कोई संबंध नहीं है। विमान में सवार विंग कमांडर एम राणा और फ्लाइट लेफ्टिनेंट अद्वितीय बल की इस हादसे में जान चली गई। इस घटना के बाद, पुराने हो चुके मिग विमान एक बार फिर चर्चा में हैं।
घटनाक्रम के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि 2025 तक मिग.21 के चारों स्क्वाड्रन को बेड़े से हटाने की योजना है। श्रीनगर स्थित स्क्वाड्रन नंबर 51 के लिये 30 सितंबर की ‘नंबर प्लेट’ तैयार होगी। ‘नंबर प्लेट’ का संदर्भ एक स्क्वाड्रन को हटाए जाने से होता है। एक स्क्वाड्रन में आम तौर पर 17-20 विमान होते हैं। इस स्क्वाड्रन को ‘सोर्डआर्म्स’ के तौर पर भी जाना जाता है। यह 1999 के करगिल युद्ध के दौरान ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के अलावा भारत द्वारा किये गये बालाकोट हवाई हमले के एक दिन बाद पाकिस्तान की तरफ से 27 फरवरी 2019 को की गई जवाबी कार्रवाई के खिलाफ अभियान में भी शामिल थी।
बेड़े में करीब 70 मिग.21 लड़ाकू विमान
विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान स्क्वाड्रन नंबर 51 से ही थे और उन्होंने हवाई झड़प के दौरान दुश्मन के एक लड़ाकू विमान को मार गिराया था। तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने इसके लिये उन्हें ‘वीर चक्र’ से सम्मानित किया था। अभिनंदन अब ग्रुप कैप्टन हैं। वायुसेना के बेड़े में फिलहाल करीब 70 मिग.21 लड़ाकू विमान और 50 मिग.29 विमान हैं। मिग.21 लंबे समय तक भारतीय वायुसेना के मुख्य लड़ाकू विमान रहे हैं। हालांकि, विमान का हाल का सुरक्षा रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है। वायुसेना के बेड़े में मिग विमान 1963 से हैं।
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1964 में इंडियन एयरफोर्स में शामिल हुए थे मिग-12 लड़ाकू विमान
पिछले कुछ सालों में कई हादसों में कई मिग-21 खोए हैं। बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद जब पाकिस्तान के फाइटर जेट ने एयरस्पेस का उल्लंघन किया था तब मिग-21 बाइसन ने ही उन्हें खदेड़ा था। इसके अलावा भी कई मौकों पर मिग-21 ने अपने कारनामों से प्रभावित किया है। साल 1964 में मिग-12 लड़ाकू विमान को पहले सुपरसोनिक फाइटर जेट के रूप में इंडियन एयरफोर्स में शामिल किया गया था। शुरुआत में ये जेट रूस में बने थे और फिर भारत ने इस विमान को असेम्बल करने का अधिकार और तकनीक भी हासिल कर ली थी। जिसके बाद हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को 1967 से लाइसेंस के तहत मिग-21 लड़ाकू विमान का प्रोडक्शन शुरू कर दिया था। रूस ने तो 1985 में इस विमान का निर्माण बंद कर दिया, लेकिन भारत इसके अपग्रेडेड वैरिएंट का इस्तेमाल करता रहा है।
क्यों कहते हैं उड़ता ताबूत?
1964 से इस विमान को ऑपरेट कर रही भारतीय वायुसेना में इसके क्रैश रिकॉर्ड को देखते हुए फ्लाइंग कॉफिन (उड़ता ताबूत) नाम दिया गया है। 1959 में बना मिग-21 अपने समय में सबसे तेज गति से उड़ान भरने वाले पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में से एक था। इसकी स्पीड के कारण ही तत्कालीन सोवियत संघ के इस लड़ाकू विमान से अमेरिका भी डरता था। यह इकलौता ऐसा विमान है जिसका प्रयोग दुनियाभर के करीब 60 देशों ने किया है। मिग-21 इस समय भी भारत समेत कई देशों की वायुसेना में अपनी सेवाएं दे रहा है। मिग- 21 एविएशन के इतिहास में अबतक का सबसे अधिक संख्या में बनाया गया सुपरसोनिक फाइटर जेट है। इसके अबतक 11496 यूनिट्स का निर्माण किया जा चुका है।
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कारगिल युद्ध में निभाई अहम भूमिका
पाकिस्तान के साथ हुए 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध में भी मिग-21 ने अहम भूमिका निभाई थी। मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान मिग-21 का एक अपग्रेडेड वर्जन है। जिससे अगले 3 से 4 साल तक इसका उपयोग किया जा सकता है। इस वर्जन का इस्तेमाल केवल भारतीय वायुसेना ही करती है। बाकी दूसरे देश इसके अलग-अलग वैरियंट का प्रयोग करते हैं।
क्या है खासियत
मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान मिग कई घातक एयरक्राफ्ट शॉर्ट रेंज और मीडियम रेंज एयरक्राफ्ट मिसाइलों से हमला करने में सक्षम है। इस लड़ाकू विमान की स्पीड 2229 किलोमीटर प्रति घंटा की है, जो उस समय सबसे तेज उड़ान भरने वाला लड़ाकू विमान था। इसकी रेंज 644 किलोमीटर के आसपास थी, हालांकि भारत का बाइसन अपग्रेडेड वर्जन लगभग 1000 किमी तक उड़ान भर सकता है। इसमें टर्बोजेट इंजन लगा हुआ है, जो विमान को सुपरसोनिक की रफ्तार प्रदान करता है।
अमेरिकी एयरफोर्स की नाक में दम
वियतनाम युद्ध के दौरान इन विमानों ने वियतनाम की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार की तरफ से लड़ते हुए अमेरिकी एयरफोर्स की नाक में दम कर रखा था। हालत यह थी कि अमेरिका को एक मिग-21 लड़ाकू विमान को घेरने के लिए अपने 6-6 लड़ाकू विमानों को तैनात करना पड़ा था। जिस इलाके में वियतनामी कम्युनिस्ट सरकार के मिग-21 उड़ान भरते थे, उस इलाके में अमेरिका भूलकर भी अपना कोई हेलिकॉप्टर नहीं भेजता था। हालांकि, अमेरिका के लड़ाकू विमान की संख्या और घातक मिसाइलों के कारण कई मिग-21 गिराए भी गए थे।

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