मीरवाइज उमर फारूक ने ‘एक्स’ पर अपनी प्रोफाइल से ‘हुर्रियत अध्यक्ष’ पदनाम हटाया, कहा
मीरवाइज उमर फारूक ने ‘एक्स’ पर अपनी प्रोफाइल से ‘हुर्रियत अध्यक्ष’ पदनाम हटाया, कहा
(फाइल फोटो के साथ)
श्रीनगर, 26 दिसंबर (भाषा) कश्मीर घाटी में प्रमुख धार्मिक नेता और उदारवादी अलगाववादी चेहरा मीरवाइज उमर फारूक ने ‘एक्स’ पर अपने सत्यापित अकाउंट के प्रोफाइल से अपना पदनाम ‘चेयरमैन ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी)’ हटा दिया है। उन्होंने कहा कि उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था ।
बृहस्पतिवार शाम सामने आए इस डिजिटल बदलाव को पर्यवेक्षक 33 साल पुराने एपीएचसी के लिए एक बड़ा झटका मान रहे हैं। एपीएचसी अलगाववादी संगठनों का एक समूह है, जिसका गठन 1993 में कश्मीर के लोगों के तथाकथित आत्मनिर्णय के अधिकार को सामने रखने के लिए किया गया था।
मीरवाइज के ‘एक्स’ हैंडल में संपादित ‘बायो’ में केवल उनके नाम, मूल स्थान एवं मूलभूत जानकारियां भर हैं। मीरवाइज के दो 2,32,000 फॉलोअर हैं।
इस बदलाव पर स्पष्टीकरण देते हुए मीरवाइज ने कहा कि उन्हें यह बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा कहा।
उन्होंने बताया कि ‘अधिकारियों’ ने अवामी एक्शन कमेटी (जिसके वह प्रमुख हैं) और एपीएचसी के अन्य घटकों पर प्रतिबंध का हवाला देते हुए उनसे कहा कि उनकी उपाधि छीन सकती है या खाता पूरी तरह से बंद किया जा सकता है।
मीरवाइज ने ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘ऐसे समय में जब सार्वजनिक स्थान और संचार के साधन बहुत सीमित हैं, यह मंच मेरे लिए अपने लोगों तक पहुंचने और हमसे जुड़े मुद्दों पर अपने विचार उनसे एवं बाहरी दुनिया से साझा करने के लिए उपलब्ध कुछ गिने-चुने साधनों में से एक है। ऐसी परिस्थितियों में यह एक मजबूरी में चुना गया विकल्प था….. जिसे मुझे चुनना पड़ा।’’
वर्ष 1993 में गठित ‘ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ (एपीएचसी) जम्मू कश्मीर में अलगाववादी संगठनों का एक समूह है, जो बड़े पैमाने पर बंद और राजनीतिक गोलबंदी में समन्वय करता था।
हालांकि, इस समूह की पकड़ पिछले दशक में कई कारणों से कमजोर हुई, जिसमें आंतरिक कलह और 2019 के बाद केंद्र द्वारा अलगाववादी संगठनों पर कड़ा रुख अपनाना शामिल है।
आतंकवाद-विरोधी कानूनों के तहत एपीएचसी के अधिकतर घटक संगठनों पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे यह समूह काफी हद तक निष्क्रिय हो गया है।
इस कदम का जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक हलकों में समर्थन और आलोचना दोनों की गयी है। सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के मुख्य प्रवक्ता और विधायक तनवीर सादिक ने दबाव को ‘गलत’ बताया है तथा इस बात पर जोर दिया है कि घाटी में मीरवाइज की भूमिका एक धार्मिक विद्वान की है।
पीडीपी नेता वहीद पारा ने इस कदम का बचाव करते हुए इसकी तुलना हुदैबिया संधि से की, जिसमें पैगंबर मोहम्मद ने शांति के हित में कुछ उपाधियां हटाने पर सहमति जताई थी।
पारा ने कहा, ‘कठोरता के बजाय शांति का चुनाव करना कमजोरी नहीं, बल्कि नेतृत्व है।’
उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे धर्मगुरु के खिलाफ इस फैसले को हथियार न बनायें।
यह बयान आलोचकों विशेष रूप से पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के उस नेता को चुप कराने के उद्देश्य से दिया गया था जिन्होंने मीरवाइज को निशाना बनाने की कोशिश की थी।
पारा ने लिखा कि मीरवाइज ने कानून और परिस्थितियों के दायरे में रहकर काम किया है और ‘इस फैसले के लिए उन पर हमला करने और उन्हें ट्रोल करने वाले’ जानबूझकर उनके रास्ते को कठिन बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि उन्होंने असाधारण चुनौतियों का सामना किया है और उनके पिता ने सर्वोच्च बलिदान दिया है।
पारा ने कहा, ‘इस तरह के हमले न्याय या शांति के लिए सहायक नहीं होते; वे केवल विभाजन को और गहरा करते हैं।’
भाषा राजकुमार माधव
माधव

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