पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की अधिकतर घटनाएं उपग्रह तस्वीरों में दर्ज नहीं होती : रिपोर्ट
पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की अधिकतर घटनाएं उपग्रह तस्वीरों में दर्ज नहीं होती : रिपोर्ट
नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) पंजाब और हरियाणा में खेतों में पराली जलाने की 90 प्रतिशत से अधिक घटनाएं अब आधिकारिक निगरानी प्रणालियों की पकड़ में नहीं आ रही हैं क्योंकि किसान खेतों में कृषि अपशिष्ट दोपहर बाद जलाते हैं। यह खुलासा सोमवार को प्रकाशित एक विश्लेषण आधारित अध्ययन रिपोर्ट में हुआ है।
इंटरनेशनल फोरम फॉर इनवॉयरमेंट, सस्टेनबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफॉरेस्ट) द्वारा जारी पराली जलाने से जुड़ी स्थिति रिपोर्ट 2025 में कहा गया है कि इस वर्ष दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली जलाने के योगदान को काफी कम करके आंका गया है।
आईफॉरेस्ट ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अंतरिक्ष से कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र निगरानी और मॉडलिंग पर अनुसंधान के लिए कंसोर्टियम (सीआरईएएमएस) द्वारा संचालित सरकार का वर्तमान निगरानी प्रोटोकॉल, अधिकांश पराली जलाने की घटनाओं को दर्ज करने में असमर्थ है, क्योंकि यह मुख्य रूप से ध्रुवीय-कक्षा वाले उपग्रहों पर निर्भर करता है, जो भारत का केवल पूर्वाह्न 10:30 बजे से अपराह्न 1:30 बजे के बीच ही निरीक्षण करते हैं।
इसमें कहा गया है कि यह अल्प अवधि है जब निगरानी की जाती है, जो किसानों द्वारा पराली जाने के समय से मेल नहीं खाती।
रिपोर्ट में जमीनी स्तर पर वास्तविक प्रगति का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें पंजाब और हरियाणा में हाल के वर्षों में पराली जलाने से प्रभावित रकबे में 25-35 प्रतिशत की कमी आई है।
आईफॉरेस्ट ने कहा कि जले हुए क्षेत्र का मानचित्रण सक्रिय आग की गणना की तुलना में अधिक सटीक तस्वीर प्रदान करता है, जो वर्तमान में बहुत बड़ी गिरावट का संकेत देता है।
आईफॉरेस्ट के सीईओ चंद्र भूषण ने कहा, ‘‘हमारा विश्लेषण इस बात का निर्विवाद प्रमाण प्रदान करता है कि भारत की वर्तमान पराली जलाने की निगरानी प्रणाली संरचनात्मक रूप से जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘किसानों ने पराली जलाने का काम दोपहर बाद के समय में स्थानांतरित कर दिया है, जबकि हमारी निगरानी उपग्रहों पर निर्भर करती है जो केवल एक सीमित समयावधि (पूर्वाह्न 10:30 बजे से अपराह्न 1:30 बजे तक) के दौरान लगी आग को ही दर्ज करते हैं।’’
भूषण ने कहा कि ‘‘इसका नतीजा यह है कि दिल्ली में पराली जलाने की घटनाओं का उत्सर्जन और वायु प्रदूषण में योगदान को बहुत कम आंका गया है। हमें इस व्यवस्था में तुरंत सुधार करने की जरूरत है।’’
रिपोर्ट में भारत के पहले बहु-उपग्रह और बहु-सेंसर मूल्यांकन का उपयोग किया गया है, जिसमें एमओडीआईएस और वीआईआईआरएस आंकड़ों को उच्च-रिज़ॉल्यूशन सेंटिनल-2 बर्न-एरिया मैपिंग और मेटियोसैट-8 और 9 पर एसईवीआईआरआई (स्पिनिंग एन्हांस्ड विज़िबल और इन्फ्रारेड इमेजर)उपकरण से 15-मिनट के भूस्थिर अवलोकनों के साथ जोड़ा गया है।
विश्लेषण के मुताबिक पंजाब में 2024 और 2025 में पराली जलाने की 90 प्रतिशत से ज्यादा बड़ी घटनाएं अपराह्न तीन बजे के बाद घटित होंगी। 2021 में, उपग्रह अवलोकन समय के बाद केवल तीन प्रतिशत ही पराली जलाने की घटनाएं घटित हुई थीं।
रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में 2019 के बाद से पराली जलाने की अधिकांश बड़ी घटनाएं अपराह्न 3:00 बजे के बाद हुई हैं।
आईफॉरेस्ट ने चेतावनी दी है कि अपराह्न और शाम के समय पराली जलाने की घटनाओं की जानकारी दर्ज नहीं होने से उत्सर्जन का अनुमान लगाने और दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता के पूर्वानुमान में बड़ी त्रुटियां हो सकती हैं।
रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि निगरानी में अंतराल के बावजूद, जलाए गए क्षेत्र का मानचित्रण पराली जलाने में वास्तविक कमी दर्शाता है।
इसके मुताबिक सेंटिनल-2 उपग्रह के आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि खरीफ सत्र के दौरान पंजाब में जला हुआ क्षेत्र 2022 में 31,447 वर्ग किमी के उच्चतम स्तर से घटकर 2025 में लगभग 20,000 वर्ग किमी रह गया, जो 37 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है।
इसी प्रकार हरियाणा में, जला हुआ क्षेत्र 2019 में 11,633 वर्ग किमी से घटकर 2025 में 8,812 वर्ग किमी रह गया है, जो 25 प्रतिशत की गिरावट है। हालांकि इसमें लगातार गिरावट का रुझान नहीं है।
आईफॉरेस्ट के कार्यक्रम प्रमुख ईशान कोचर ने कहा, ‘‘हम उन चीजों का प्रबंधन नहीं कर सकते जिन्हें हम सटीक रूप से माप नहीं पाते। नीतिगत निर्णय वर्तमान में अधूरी जानकारी के आधार पर लिए जा रहे हैं। सिंधु-गंगा के मैदान में पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए, सरकार को निगरानी प्रोटोकॉल में तत्काल सुधार करना चाहिए ताकि जलाए गए क्षेत्र का मानचित्रण और भूस्थिर डेटा एकीकृत किया जा सके।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें पंजाब और हरियाणा से आगे बढ़कर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के उभरते केंद्रों पर भी अपना ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।’’
भाषा धीरज संतोष
संतोष

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