मैसुरु दशहरा उत्सव अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा, कर्नाटक की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का प्रदर्शन
मैसुरु दशहरा उत्सव अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा, कर्नाटक की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का प्रदर्शन
Raipur News/Image Source: IBC24
मैसुरु, दो अक्टूबर (भाषा)विश्व प्रसिद्ध 11 दिवसीय मैसुरु दशहरा उत्सव बृहस्पतिवार को नगर की अधिष्ठात्री देवी चामुंडेश्वरी की शोभायात्रा के साथ ही अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है।
‘नाडा हब्बा’ (राज्य उत्सव) के रूप में मनाया जाने वाला मैसुरु दशहरा या ‘शरणा नवरात्रि’ उत्सव इस साल कर्नाटक की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को शाही धूमधाम और गौरव के साथ प्रदर्शित करने का मंच बना।
हजारों लोगों के ‘जंबू सवारी’ देखने के लिए जुटने की उम्मीद है। ‘अभिमन्यु’ नाम के हाथी के नेतृत्व में एक दर्जन सजे-धजे हाथियों की शोभायात्रा निकली। अभिमन्यु की पीठ पर मैसुरु और यहां के राजपरिवार की अधिष्ठात्री देवी चामुंडेश्वरी का विग्रह 750 किलोग्राम के स्वर्णिम हौदा या ‘अंबरी’ में स्थापित किया गया।
भव्य शोभायात्रा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा अपराह्न एक बजे से 1.18 बजे के बीच शुभ ‘धनुर लग्न’ के दौरान राजसी अम्बा विलास पैलेस के बलराम द्वार पर नंदी ध्वज की पूजा के साथ शुरू हुई।
नंदी ध्वज की पूजा करने के बाद सिद्धरमैया ने राज्य के लोगों को विजयादशमी की शुभकामनाएं दीं।
कर्नाटक की विरासत को दर्शाने वाले विभिन्न जिलों के सांस्कृतिक समूहों और झांकियों से युक्त यह शोभायात्रा लगभग पांच किलोमीटर की दूरी तय कर बन्नीमंतपा पहुंचेगी।
सरकारी विभागों की योजनाओं, कार्यक्रमों और सामाजिक संदेशों को दर्शाती झांकियां भी इसमें शामिल होंगी। शोभायात्रा शुरू होने से कई घंटे पहले ही रास्ते में भारी भीड़ देखी गई।
मुख्यमंत्री और पूर्व मैसुरु राजघराने के वंशज यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार सहित गणमान्य व्यक्ति शाम 4.42 बजे से 5.06 बजे के बीच शुभ ‘कुंभ लग्न’ में देवी चामुंडेश्वरी के विग्रह पर पुष्प वर्षा कर शोभायात्रा को रवाना करेंगे।
‘कुमकी’ हाथियों के साथ अभिमन्यु के आगमन पर इक्कीस तोपों की सलामी दी जाएगी और गणमान्य व्यक्ति विशेष रूप से स्थापित मंच से पुष्प अर्पित करेंगे।
विजयादशमी पर दशहरा शोभायात्रा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से, राजा अपने भाई और भतीजे के साथ हौदे में सवार होते थे, श्री जयचामाराजेंद्र वाडियार मैसूर के अंतिम शाही राजा थे जिन्होंने ऐसा किया। आज भी यह परंपरा जारी है लेकिन अब देवी चामुंडेश्वरी का विग्रह 750 किलोग्राम के हौदा में ले जाया जाता है। यह हौदा लकड़ी का है जिसपर करीब 80 किलोग्राम सोने की परत चढ़ी है।
अधिकारियों ने बताया कि पुलिस ने शोभायात्रा के लिए सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन के व्यापक प्रबंध किए हैं।
महल में परंपरा को बनाए रखते हुए यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वाडियार शाही पोशाक में, अंबा विलास पैलेस से परिसर के भीतर भुवनेश्वरी देवी मंदिर तक ‘विजया यात्रा’ का नेतृत्व करेंगे, जहां वह बृहस्पतिवार को ‘शमी’ वृक्ष की विशेष पूजा करेंगे।
वाडियार ने बुधवार को ‘आयुध पूजा’ की, जो पूर्ववर्ती राजपरिवार के हथियारों, वाहनों और हाथियों, घोड़ों और गायों सहित पशुओं के सम्मान में की जाने वाली एक रस्म है।
उत्सव के तहत ‘वज्रमुष्टि कलागा’ – पहलवानों (जेट्टी) के बीच द्वंद्वयुद्ध का आयोजन महल में किया जाएगा, जिसमें राज्य भर से प्रतिभागी भाग लेंगे।
महल में नवरात्रि समारोह के तहत दैनिक अनुष्ठान होते हैं, जिसमें वाडियार वैदिक मंत्रोच्चार के बीच स्वर्ण सिंहासन पर बैठकर ‘खासगी दरबार’ (निजी दरबार) लगाते हैं।
विजयनगर शासकों ने दशहरा मनाने की परंपरा शुरू की थी जो मैसुरु के वाडियारों को विरासत में मिली। सन् 1610 में राजा वाडियार प्रथम द्वारा मैसुरु में शुरू किया गया यह उत्सव 1971 में प्रिवी पर्स की समाप्ति के बाद एक निजी समारोह बन गया। यह परंपरा 1975 तक एक साधारण आयोजन के रूप में जारी रही जब तत्कालीन डी. देवराज उर्स सरकार ने इसे राज्य उत्सव के तौर पर भव्य रूप से मनाने की शुरुआत की।
भाषा धीरज पवनेश
पवनेश

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