संसद पर नयी किताब का सुझाव, ‘प्रधानमंत्री का प्रश्नकाल’ शुरू करना चाहिए

संसद पर नयी किताब का सुझाव, 'प्रधानमंत्री का प्रश्नकाल' शुरू करना चाहिए

संसद पर नयी किताब का सुझाव, ‘प्रधानमंत्री का प्रश्नकाल’ शुरू करना चाहिए
Modified Date: April 20, 2025 / 04:18 pm IST
Published Date: April 20, 2025 4:18 pm IST

नयी दिल्ली, 20 अप्रैल (भाषा) संसद को अपनी बहस और चर्चा के प्रारूप में आमूलचूल बदलाव करने की जरूरत है, ताकि लोगों की आकांक्षाओं को बेहतर ढंग से जाहिर किया जा सके और उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके। संसद पर लिखी गई एक नयी किताब में यह सुझाव दिया गया है।

‘द इंडियन पार्लियामेंट : संविधान सदन टू संसद भवन’ में एक वर्ष में कम से कम 100 दिन संसद की बैठक आयोजित करने और कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने के लिए ‘प्रधानमंत्री का प्रश्नकाल’ शुरू करने की भी जोरदार वकालत की गई है।

‘प्रधानमंत्री का प्रश्नकाल’ में विशेष रूप से प्रधानमंत्री से सवाल पूछे जाएंगे।

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किताब के मुताबिक, ‘‘प्रधानमंत्री के प्रश्नकाल की शुरुआत वास्तव में औपनिवेशिक अतीत पर एक विराम होगी और यह भारतीय संसदीय इतिहास में एक नये युग का आगाज करेगी।’’

यह किताब लोकसभा सचिवालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव देवेंद्र सिंह ने लिखी है।

इसमें कहा गया है कि सप्ताह में एक बार ‘प्रधानमंत्री के प्रश्नकाल’ की शुरुआत एक सुरक्षा द्वार के रूप में काम करेगी, जिससे सदस्यों को तत्काल चिंता वाले मुद्दे उठाने का अवसर मिलेगा, जबकि प्रधानमंत्री को सरकार की नीतियों को समझाने और आलोचनाओं का जवाब देने का मौका हासिल होगा।

‘द इंडियन पार्लियामेंट : संविधान सदन टू संसद भवन’ में सुझाव दिया गया है, ‘‘प्रधानमंत्री के प्रश्नकाल की शुरुआत और इसका प्रभावी इस्तेमाल विपक्ष के आरोपों की हवा निकालने, खीझे हुए लोगों को शांत करने और कार्यवाही को बार-बार बाधित करने या उसे प्रभावित करने की प्रवृत्ति को रोकने में काफी मददगार हो सकता है।’’

संसद के बारे में जनता की धारणा के बारे में पुस्तक में कहा गया है कि संसद की कार्यवाही के बारे में जनता की निराशा और अविश्वास, कुछ सदस्यों के अनुचित विरोध, लगातार अवरोधों और अनैतिक आचरण का परिणाम है।

पुस्तक में सुझाव दिया गया है, ‘‘संसद को अधिक समसामयिक स्वरूप प्रदान करने और उसे बहस एवं जवाबदेही के अधिक प्रभावी मंच के रूप में उभारने के लिए, संसद की कार्यप्रणाली और प्रक्रियाओं में नवीनता की आवश्यकता है।’’

पुस्तक में संसद के कामकाज से अधिक से अधिक लोगों को रूबरू कराने के लिए साइबर इंटरफेस बनाने का भी आह्वान किया गया है।

भाषा रवि कांत रवि कांत पारुल

पारुल


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