ओबीसी दर्जा मामला : उच्चतम न्यायालय से बंगाल सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा

ओबीसी दर्जा मामला : उच्चतम न्यायालय से बंगाल सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा

  •  
  • Publish Date - August 27, 2024 / 02:42 PM IST,
    Updated On - August 27, 2024 / 02:42 PM IST

नयी दिल्ली, 27 अगस्त (भाषा) पश्चिम बंगाल सरकार ने सरकारी नौकरियों और दाखिले में आरक्षण देने के लिए राज्य में कई जातियों को दिए गए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के दर्जे को रद्द करने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले से जुड़े एक मामले में वादियों द्वारा दायर जवाब का प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय से मंगलवार को समय मांगा।

वर्ष 2010 में ओबीसी का दर्जा जिन नई जातियों को दिया गया उनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय की जातियां हैं।

शीर्ष अदालत को इस मुद्दे पर दाखिल अन्य याचिकाओं के साथ राज्य सरकार की अपील पर मंगलवार को सुनवाई करनी थी।

राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से कहा कि मामले में दूसरे पक्ष द्वारा बड़े पैमाने पर दस्तावेज दायर किए गए हैं और उन्हें इनका जवाब देने के लिए समय चाहिए।

इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘फिर हम मामले को सोमवार (दो सितंबर) से शुरू हो रहे सप्ताह के लिए सूचीबद्ध करेंगे।’

राज्य सरकार ने 20 अगस्त को उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था। इसके बाद पीठ ने मामले को 27 अगस्त को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था।

सिब्बल ने तब कहा था, ”हमें उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने की जरूरत है… छात्रवृत्ति का मुद्दा लंबित है और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के तहत प्रवेश प्रभावित होगा। याचिका पर दिन के दौरान सुनवाई की जाए।”

शीर्ष अदालत ने पांच अगस्त को राज्य सरकार से ओबीसी सूची में शामिल नयी जातियों के सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर मात्रात्मक डेटा प्रदान करने के लिए कहा था।

उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर निजी वादियों को नोटिस जारी करते हुए सर्वोच्च अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार से 37 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने से पहले उसके या राज्य के पिछड़ा वर्ग पैनल द्वारा किए गए परामर्श (यदि कोई हो तो) का विवरण देते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा था।

उच्च न्यायालय ने 22 मई को पश्चिम बंगाल में कई जातियों को 2010 से दिए गए ओबीसी दर्जे को रद्द कर दिया था और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और राज्य संचालित शैक्षिक संस्थानों में दाखिले में उन्हें प्राप्त आरक्षण को अवैध ठहराया था।

इन जातियों के ओबीसी दर्जे को रद्द करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने की एकमात्र कसौटी असल में धर्म रही है।’

भाषा पारुल संतोष

संतोष