अपारदर्शी चुनावी बॉंड योजना लोकतंत्र को नष्ट कर देगी: याचिकाकर्ता ; न्यायालय ने पेचीदा मुद्दा बताया
अपारदर्शी चुनावी बॉंड योजना लोकतंत्र को नष्ट कर देगी: याचिकाकर्ता ; न्यायालय ने पेचीदा मुद्दा बताया
नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) राजनीतिक दलों को चंदे के लिए 2018 में लायी गई ‘चुनावी बॉंड’ योजना की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय से मंगलवार को कहा कि यह ‘‘लोकतंत्र को नष्ट कर देगी’’ क्योंकि यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है और सत्तारूढ़ एवं विपक्षी दलों को समान अवसर उपलब्ध नहीं कराती।
न्यायालय ने कहा कि चुनावी वित्त पोषण एक ‘पेचीदा मुद्दा’है।
गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ (एडीआर) की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि चुनावी बॉंड योजना राजनीतिक दलों को चंदे के स्रोत के बारे में सूचना पाने के नागरिकों के अधिकार को कमजोर करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत प्रदत्त मूल अधिकार है।
योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलील पेश करना शुरू करते हुए, भूषण ने कहा कि यह ‘‘अपारदर्शी’’ और ‘‘अनाम माध्यम’’ देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है तथा यह मानने का एक अच्छा कारण है कि ये बॉंड सत्तारूढ़ दलों को रिश्वत के रूप में दिए जा रहे हैं।
उन्होंने पीठ से कहा, ‘‘…यह (चुनावी बॉंड) इस देश में लोकतंत्र को नष्ट करता है क्योंकि यह सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों तथा निर्दलीय उम्मीदवारों को समान अवसर उपलब्ध नहीं कराता।’’
पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा हैं।
भूषण ने एक ‘चार्ट’ का हवाला दिया और कहा कि 2021-2022 तक चुनावी बॉंड के माध्यम से प्राप्त पार्टी-वार चंदा के रूप में, भाजपा को 5,271 करोड़ रुपये मिले, जबकि कांग्रेस को 952 करोड़ रुपये मिले, जैसा कि ऑडिट रिपोर्ट में घोषित किया गया है।
उन्होंने 2021-2022 तक की अवधि के दौरान चुनावी बॉंड के माध्यम से अन्य राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त चंदे के बारे में भी आंकड़ों का उल्लेख किया, जिसमें तृणमूल कांग्रेस को 767 करोड़ रुपये, राकांपा को 63 करोड़ रुपये और आम आदमी पार्टी को 48 करोड़ रुपये शामिल हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘सर्वाधिक चंदा केंद्र या राज्यों में सत्तारूढ़ दलों को मिला है।’’ उन्होंने कहा कि जो पार्टियां सत्ता में नहीं हैं उन्हें ज्यादा चंदा नहीं मिला।
भूषण ने कहा, ‘‘यह लोकतंत्र को नष्ट कर देगा। पहले से ही हमारा लोकतंत्र लगभग पैसे का खेल है। यह पैसे का खेल बन गया है।’’
उन्होंने दलील दी कि धन बल या धन का असमान इस्तेमाल स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा को नष्ट कर देता है। भूषण ने कहा कि लगभग सारे चुनावी बॉंड केवल सत्तारूढ़ पार्टियों द्वारा प्राप्त किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि इस तरह के सभी चंदे का 50 प्रतिशत से अधिक केंद्र में सत्तारूढ़ दल को मिला, और बाकी रकम राज्यों में सत्तारूढ़ दलों को मिली है।
दिन भर चली सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘‘चुनावी वित्तपोषण एक बड़ा मुद्दा है। यह बहुत आसान चीज नहीं है। यह एक पेचीदा मुद्दा है।’’
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पूंजी और प्रभाव साथ-साथ रहते हैं और चुनावी प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि यह सभी प्रतिभागियों को समान अवसर प्रदान करे।
सिब्बल ने कहा, ‘‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संविधान का मूल ढांचा है।’’
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि भारत के विनिर्माण क्षेत्र में किसी विदेशी कंपनी के निवेश करने से यदि देश की सुरक्षा प्रभावित होती है तो क्या किसी राजनीतिक दल में चीनी निवेश (धन) आने पर यह (सुरक्षा) प्रभावित नहीं होगी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह नीतिगत विषय है। आप कह रहे हैं कि चीन की कोई कंपनी, चूंकि चीन भू सीमा साझा करता है, इसलिए वह अनुबंध के लिए बोली नहीं लगा सकती है, लेकिन यहां आपका कहना यह है कि उसने चुनावी बॉंड में निवेश किया होगा।’’
न्यायालय में विषय की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।
सरकार ने यह योजना दो जनवरी 2018 को अधिसूचित की थी। इस योजना को राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाने की कोशिशों के हिस्से के रूप में पार्टियों के लिए नकद चंदे के एक विकल्प के रूप में लाया गया है।
भाषा सुभाष माधव
माधव

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