घर से दूर प्रवासी मजदूरों की परायेपन और गुमनामी की कठोर हकीकतों को दर्शाती प्रदर्शनी ‘अदरलैंड’

घर से दूर प्रवासी मजदूरों की परायेपन और गुमनामी की कठोर हकीकतों को दर्शाती प्रदर्शनी ‘अदरलैंड’

घर से दूर प्रवासी मजदूरों की परायेपन और गुमनामी की कठोर हकीकतों को दर्शाती प्रदर्शनी ‘अदरलैंड’
Modified Date: December 16, 2025 / 05:48 pm IST
Published Date: December 16, 2025 5:48 pm IST

(तस्वीरों के साथ)

(मनीष सैन)

पणजी, 16 दिसंबर (भाषा)फोटोग्राफर समर जोधा ने यहां ‘‘नेमिंग दोज़ कन्साइन टू नेमलेसनेस’ नाम से बड़े-बड़े शहरों को चमकाने वाले गुमनाम प्रवासी श्रमिकों की कहानियों को अपनी तस्वीरों के माध्यम से बयां किया है।

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जोधा ने 10वें सेरेंडिपिटी आर्ट्स फेस्टिवल में तस्वीरों के माध्यम से दुबई के बुर्ज खलीफा में काम करने वाले 3,500 से अधिक श्रमिकों की गुमनामी की भयावह कहानी को दर्शाया है। यह शो पहचान की अवधारणा की पड़ताल करते हुए उन लोगों के संघर्षों और सपनों को बयां करता है, जिन्हें समाज के हाशिये पर धकेल दिया गया है, जहां उनके नाम भी गुम हो जाते हैं। रंजीत होस्कोटे द्वारा संयोजित यह प्रदर्शनी ‘अदरलैंड’ में लगभग 1,200 श्रमिकों की तस्वीरें हैं, जिनमें से अधिकांश ‘ग्लोबल साउथ’ के थे।

‘‘अदरलैंड’’, मातृभूमि की अवधारणा पर आधारित है, जो चार भारतीय फोटोग्राफरों – जोधा, नवीन किशोर, राम रहमान और रितेश उत्तमचंदानी – के कार्यों को एक साथ लाता है। ये तस्वीर अन्य समाजों में संकट, विकट परिस्थितियों, अशांति और उथल-पुथल के दौर के साक्षी रहे हैं।

जोधा ने ‘पीटीआई-भाषा’से बातचीत में कहा, ‘‘मैं उन लोगों को देख रहा था, जो इसे (बुर्ज खलीफा) बना रहे थे, जिसका कोई खास महत्व नहीं है क्योंकि हमारे अपने देश में भी इनका कोई महत्व नहीं है। और सबसे बड़ी कमी क्या है? इसकी मानवीय गरिमा।’’

उन्होंने बताया कि दुनिया की सबसे ऊंची इमारत में अपने तीन साल से अधिक की परियोजना के लिए लगभग 30 देशों के श्रमिकों से एक बोर्ड पर अपना नाम और अपनी पहचान बोर्ड पर लिखने को कहा और पासपोर्ट-शैली की तस्वीर खींची।

जोधा ने बताया ‘‘ज्यादातर लोगों ने, बल्कि उनमें से कई लोगों ने, पासपोर्ट बनवाने से पहले कभी फोटो नहीं खिंचवाई थी। इसलिए हमने स्टूडियो में पासपोर्ट बनवाने का वही अनुभव दोबारा तैयार किया। वे हर सुबह आते थे। उनमें से कई लोगों को लिखना नहीं आता था। इसलिए उन्हें लिखना सीखना पड़ा, ताकि वे अपने पासपोर्ट पर हस्ताक्षर कर सकें।’’

इस प्रक्रिया के अंत तक, जोधा के पास 3,500 से अधिक तस्वीरें थीं, जिनमें लोग अपने नाम, अंगूठे के निशान और निर्माण स्थल पर दिए गए नंबरों के माध्यम से अपनी पहचान बता रहे थे।

इस सामूहिक प्रदर्शनी में फोटोग्राफ, वीडियो और टेक्स्ट के माध्यम से बात कही गई है। इसे ‘‘दमन की मशीनों’’ के खिलाफ सामूहिक बेचैनी और एकजुटता के रूप, हाशिये पर गढ़े गए श्रम और आजीविका के रूप, प्रतिकूल और शत्रुतापूर्ण वातावरण में जीवित रहने और कलाकार को एक गवाह और प्रतिभागी दोनों के रूप में प्रदर्शित किया गया है, जो एक बाहरी व्यक्ति एक भीतर के व्यक्ति की भी भूमिका निभा रहा है।

जोधा जहां प्रवासी के पहचान से जुड़े सवाल को उजागर करते हैं , वहीं उत्तमचंदानी अपने साथी के साथ बातचीत के इर्द-गिर्द पिरोई गई तस्वीरों के माध्यम से मैनचेस्टर में बेगानेपन के विचार की पड़ताल करते हैं।

उत्तमचंदानी जब शहर में घूम रहे थे, तो उन्हें उपहास, नस्लवाद का सामना करना पड़ा और तस्वीरें लेने के लिए या केवल उनके दिखने के तरीके – एक बाहरी व्यक्ति होने के कारण उन्हें बाल यौन शोषण करने वाला कहा गया।

तस्वीरों के साथ दिए गए पाठ में, उत्तमचंदानी उन घटनाओं का वर्णन करते हैं, जिनका सामना उन्होंने मैनचेस्टर में किया, जिसमें वह एक पर्यवेक्षक से लेकर पर्यवेक्षित होने तक का सफर तय करते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘लोग अपने आप मान लेते हैं कि कैमरा लिए, एशियाई दिखने वाला कोई व्यक्ति बाल यौन शोषण करने वाला है। यह एक धारणा है। गलतफहमियों, अज्ञानता और दुष्प्रचार से पैदा हुई। दूसरे, बाहरी व्यक्ति के प्रति भी डर होता है। मुझे अंदरूनी व्यक्ति बनने की कोई इच्छा नहीं है। मैं जानता हूं कि मैं कितनी भी कोशिश कर लूं, मैं उनके अपने भीतर का व्यक्ति नहीं बन पाऊंगा।’’,

सेरेंडिपिटी आर्ट्स फेस्टिवल का 10वां संस्करण 12 दिसंबर को यहां शुरू हुआ, जिसमें दृश्य कला, शिल्प, रंगमंच, नृत्य, संगीत, फोटोग्राफी और पाक कला सहित विभिन्न क्षेत्रों के 40 से अधिक कलाकार शामिल हुए।

दस दिवसीय यह उत्सव बहु-विषयक कलाओं के एक दशक के उत्सव का प्रतीक है, जिसे कवि-कला समीक्षक होस्कोटे, थिएटर निर्देशक अनुराधा कपूर, भरतनाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रन, संगीत निर्देशक रंजीत बरोट, कला क्यूरेटर राहाब अल्लाना और खाद्य इतिहास जानकारी ओडेट मैस्करनहास सहित अपने-अपने क्षेत्रों के दिग्गजों की विशेषज्ञता से आकार दिया गया है।

यह उत्सव 21 दिसंबर को संपन्न होगा।

भाषा धीरज दिलीप

दिलीप


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