मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर कानून के क्रियान्वयन से संबंधित याचिका एनएचआरसी को हस्तांतरित

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर कानून के क्रियान्वयन से संबंधित याचिका एनएचआरसी को हस्तांतरित

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर कानून के क्रियान्वयन से संबंधित याचिका एनएचआरसी को हस्तांतरित
Modified Date: October 28, 2025 / 01:01 pm IST
Published Date: October 28, 2025 1:01 pm IST

नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मानसिक बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों के अधिकारों और आवश्यकताओं की सुरक्षा के लिए 2017 के एक कानून के क्रियान्वयन के लिए दायर जनहित याचिका मंगलवार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को हस्तांतरित कर दी और उसे मामले की निगरानी करने को कहा।

न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि मानवाधिकार आयोग को अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा 2018 में दायर याचिका पर गौर करना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने केंद्र द्वारा दायर हलफनामे पर गौर किया और कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 को लागू करने के लिए वैधानिक प्राधिकरण गठित किए गए हैं।

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बहरहाल, उसने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने कई अन्य ‘‘मांग’’ भी की हैं। इनकी निगरानी भी एनएचआरसी द्वारा की जाएगी।

उच्चतम न्यायालय ने पहले कहा था कि संसद ने 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम पारित किया था, जिसमें केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (सीएमएचए), राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (एसएमएचए) और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (एमएचआरबी) की स्थापना का प्रावधान है। दो मार्च को न्यायालय ने केंद्र को इन तीनों निकायों की स्थापना और कार्यप्रणाली का विवरण देते हुए एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

उच्चतम न्यायालय ने तीन जनवरी, 2019 को केंद्र, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उस याचिका पर नोटिस जारी किया था जिसमें दावा किया गया था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अधिनियम के प्रावधानों को लागू न करना नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन है।

जनहित याचिका में कहा गया है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में एक धर्म आधारित मानसिक आश्रय स्थल में मानसिक बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों को जंजीरों से बांध दिया गया है। अदालत ने ऐसे रोगियों की तस्वीरों पर गौर किया और इसे बहुत चिंता का विषय बताया।

पीठ ने कहा कि मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों को जंजीरों में बांधना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है और उनकी गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता।

भाषा गोला वैभव

वैभव


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