न्यायाधीश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफी मांगें वादी और वकील: उच्चतम न्यायालय

न्यायाधीश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफी मांगें वादी और वकील: उच्चतम न्यायालय

न्यायाधीश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफी मांगें वादी और वकील: उच्चतम न्यायालय
Modified Date: August 11, 2025 / 02:09 pm IST
Published Date: August 11, 2025 2:09 pm IST

नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक वादी और उसके वकीलों को तेलंगाना उच्च न्यायालय के उन न्यायाधीश से बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया जिनके खिलाफ उन्होंने ‘‘अपमानजनक आरोप’’ लगाए थे।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने स्वत: संज्ञान वाली अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप अवमाननापूर्ण हैं और उन्हें माफ नहीं किया जा सकता।

यह मामला एन पेड्डी राजू द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका से संबंधित है जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के खिलाफ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम के तहत एक आपराधिक मामले को खारिज करने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर पक्षपातपूर्ण और अनुचित व्यवहार करने का आरोप लगाया गया था।

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प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम न्यायाधीशों को कठघरे में खड़ा करने और किसी भी वादी को इस प्रकार के आरोप लगाने की इजाजत नहीं दे सकते। उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश संवैधानिक पदाधिकारी हैं और उन्हें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान सम्मान एवं छूट प्राप्त है।’’

अवमानना नोटिस मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने ‘‘बिना शर्त माफी’’ मांगी और उन परिस्थितियों के बारे में बताया जिनमें ये बयान दिए गए थे।

प्रधान न्यायाधीश ने हालांकि कहा कि इस तरह का आचरण एक ‘‘परेशान करने वाला चलन’’ बन गया है जब वकील और वादी राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में न्यायाधीशों की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं।

संविधान पीठ के एक फैसले का हवाला देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने के लिए वादियों और वकीलों को अवमानना का दोषी ठहराया जा सकता है।

पीठ ने निर्देश दिया कि पहले से निपटाए जा चुके मामले को तेलंगाना उच्च न्यायालय में फिर से खोला जाए और एक सप्ताह के भीतर संबंधित न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, साथ ही याचिकाकर्ता को न्यायाधीश के समक्ष बिना शर्त माफी मांगने का आदेश भी दिया।

इसने कहा कि इसके बाद न्यायाधीश एक सप्ताह के भीतर तय करेंगे कि माफी स्वीकार की जाए या नहीं।

प्रधान न्यायाधीश ने हाल में तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए उस फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें ऐसी स्थितियों में दंडात्मक कार्रवाई के बजाय माफी स्वीकार करने का पक्ष लिया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘बुद्धिमत्ता दंड देने के बजाय क्षमा करने में निहित है।’’

भाषा

सिम्मी नेत्रपाल

नेत्रपाल


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