कोच्चि, नौ जून (भाषा) केरल उच्च न्यायालय ने एक आदेश में दिशा निर्देश जारी किए हैं जो उन मामलों में लागू होंगे जिनमें आरोपी ने दोषी होने की याचना की है। इन निर्देशों के अनुसार निचली अदालतों को आरोप की व्याख्या करनी होगी और ‘दोषी याचना’ स्वैच्छिक तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि अदालत द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर केवल होठ हिलाने या ‘हाँ’ कहने भर से किसी भी परिस्थिति में यह स्वीकार नहीं किया जाएगा कि आरोपी ने दोषी होने की याचना की है। एक जुलूस को बाधित करने और कुछ लोगों पर हमला करने के लिए एक निचली अदालत द्वारा एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था। उच्च न्यायालय की एक एकल पीठ ने इस निर्णय को बदलते हुए दिशा निर्देश दिए।
न्यायमूर्ति वी जी अरुण ने दिशा निर्देशों में कहा कि मजिस्ट्रेट को आरोपी के विरुद्ध लगाए गए आरोप तय करने चाहिए। अदालत ने कहा कि आरोपों को पढ़ा जाना चाहिए और आरोपी को समझाना चाहिए और उससे पूछा जाना चाहिए कि जो आरोप उस पर लगाए गए हैं क्या वह उनमें खुद को दोषी होने की याचना करता है।
पीठ ने कहा कि आरोपी को आरोपों की गंभीरता को और दोषी याचना के नतीजे समझने के बाद दोषी होने की याचना करनी चाहिए। याचना स्वैच्छिक और स्पष्ट होनी चाहिए तथा मजिस्ट्रेट को यथासंभव आरोपी की दोषी याचना को शब्दों में दर्ज करना चाहिए।
अदालत ने मंगलवार को दिए आदेश में कहा, “सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए मजिस्ट्रेट को अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और दोषी याचना को स्वीकार करने पर निर्णय लेना चाहिए।”
अदालत ने कहा, “यदि याचना स्वीकार कर ली जाती है तो आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है और उचित सजा दी जा सकती है।” याचिकाकर्ता रसीन बाबू के एम ने खुद को दोषी ठहराए जाने को चुनौती दी थी और कहा था कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अवैध प्रक्रिया का पालन किया गया।
भाषा यश अनूप
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