नयी दिल्ली, 19 फरवरी (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शैक्षणिक रिकॉर्ड पर सुनवाई के दौरान बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया गया कि किसी छात्र को डिग्री प्रदान करना निजी नहीं, बल्कि सार्वजनिक कार्य है, जो सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में आता है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता के समक्ष पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने आरटीआई आवेदक इरशाद का प्रतिनिधित्व करते हुए दलील दी कि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) निस्संदेह आरटीआई अधिनियम के तहत एक ‘‘सार्वजनिक प्राधिकरण’’ है और डिग्री के बारे में जानकारी देने पर आवेदक के अधिकार या इरादे के आधार पर विवाद नहीं किया जा सकता है।
यह मामला केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 21 दिसंबर, 2016 के आदेश से संबंधित है। सीआईसी के इस आदेश में 1978 में बीए परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी गई थी। इसी वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
उच्च न्यायालय ने 23 जनवरी, 2017 को सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी।
फरासत ने कहा, ‘‘डिग्री एक विशेषाधिकार है, न कि अधिकार। यह एक विशेषाधिकार है जो सरकार ने मुझे कुछ निश्चित मानकों को पूरा करने के लिए दिया है। डिग्री प्रदान करना एक सार्वजनिक कार्य है। यह जनता को यह दर्शाने के लिए है कि वह योग्य है। इसमें कुछ भी निजी नहीं है। मुझे अपने लिए डिग्री की आवश्यकता नहीं है। यह एक सार्वजनिक कार्य है।’’
उन्होंने दलील दी कि यहां तक कि एक छात्र की अंकतालिका में भी विश्वविद्यालय द्वारा सार्वजनिक किए गए अंक शामिल थे और इस मामले में डीयू और उसके छात्रों के बीच किसी भी प्रकार के संबंध के अस्तित्व को खारिज कर दिया।
फरासत ने कहा, ‘‘यह सूचना डीयू द्वारा बनाई गई है। डिग्री डीयू द्वारा दी गई है। यह मेरी डिग्री नहीं है जो डीयू को दी गई है।’’
एक अन्य आरटीआई आवेदक नीरज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि चुनाव कानून के तहत अभ्यर्थी की शैक्षणिक योग्यता का खुलासा किया जाना चाहिए, क्योंकि जनता को यह जानने का अधिकार है।
सीआईसी के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी याचिका में डीयू ने इसे एक ‘‘मनमाना’’ आदेश कहा जो ‘‘कानून की दृष्टि से नहीं टिकने लायक’’ बताया क्योंकि जिस जानकारी का खुलासा करने का अनुरोध किया गया है वह “तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी” है।
मामले में अगली सुनवाई 27 फरवरी को होगी।
भाषा देवेंद्र माधव
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