दिल्ली में बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले छात्रों की बढ़ीं परेशानियां
दिल्ली में बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले छात्रों की बढ़ीं परेशानियां
(श्रुति भारद्वाज)
नयी दिल्ली, पांच सितंबर (भाषा) यमुना के जलस्तर में लगातार वृद्धि के बीच दिल्ली के बाढ़ प्रभावित इलाकों में चारपाइयों पर गीली एवं मुड़ी हुई किताबें रखी हैं, गैस वाले चूल्हे पर यूनिफॉर्म सूख रही है और आधी फटी हुईं कॉपियां पकड़े बच्चे परिवारों के संघर्ष को बयां कर हैं।
अपराह्न दो बजे यमुना का जलस्तर 207.445 पर था, ऐसे में रस्सियों, रेलिंग और यहां तक कि पेड़ों की शाखाओं से लटकी सूखती किताबें और यूनिफॉर्म बाढ़ से हुई तबाही को बयां कर रही हैं। परीक्षाएं नजदीक आने के साथ, विद्यार्थी पाठ्यपुस्तकें उधार ले रहे हैं और चिंता में डूबे हुए हैं।
यमुना खादर की निवासी और 11वीं कक्षा की छात्रा अनुराधा गुलाबी स्कूल ड्रेस में एक टूटी हुई प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठकर ध्यान से एक गीली किताब के पन्ने पलट रही थी, जिसे वह किसी तरह बचा पाई है।
अनुराधा ने कहा, ‘‘मेरी कई किताबें, नोटबुक और स्टेशनरी खो गई हैं। साल के बीच में, ये सारी चीजें हमें कौन देगा?’’
छात्रा ने कहा, ‘‘अब मैं अपने सहपाठियों से किताबें उधार लेकर देर शाम तक नोट्स बनाती हूं, लेकिन यह सब पूरा करना बहुत मुश्किल है।’’
मयूर विहार फेज-एक के पास रहने वाली दसवीं कक्षा की छात्रा मानवी को डर है कि उसे अपनी ‘मिड-सेमेस्टर’ परीक्षाएं छोड़नी पड़ सकती हैं। छात्रा ने कहा, ‘‘कुछ ही दिन बाद मेरी परीक्षाएं हैं, लेकिन मेरे सारे नोट्स और किताबें गायब हो गई हैं, जिनमें मैंने अपना पाठ्यक्रम लिखा था। यहां तक कि मेरी स्कूल यूनिफॉर्म भी गायब है।’’
छात्रा ने कहा, ‘‘मैं इस हालत में स्कूल कैसे जा सकती हूं? जब तक मुझे किताबें और यूनिफॉर्म नहीं मिल जाती, मुझे नहीं लगता कि मैं स्कूल जा पाऊंगी।’’
आठ साल का अंकुश राहत शिविर के बाहर संकरी गली में छोटी साइकिल चला रहा था, उसने स्कूल की शर्ट और पायजामा पहना हुआ था। वह तीन दिन से स्कूल नहीं गया था।
अंकुश ने कहा, ‘‘मेरे कपड़े गंदे हो गए हैं और मेरी मां ने कहा है कि जब तक मेरे कपड़े सूख न जाएं, मुझे स्कूल की शर्ट पहननी है।’’
अभिभावकों के लिए, डर सिर्फ सामान खोने का ही नहीं, बल्कि खोए हुए अवसरों का भी है।
दिहाड़ी मजदूर रमेश कुमार की बेटी नौवीं कक्षा में पढ़ती है। कुमार ने कहा कि उन्हें चिंता है कि कहीं उनकी बेटी पढ़ाई में पिछड़ न जाए।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी बेटी के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता शिक्षा है। अगर वह अभी कक्षाएं और परीक्षाएं छोड़ती है, तो इसका असर उसके पूरे साल पर पड़ेगा। मैं कुछ पैसे लेकर खाना तो खरीद सकता हूं, लेकिन मुझे नहीं पता कि किताबें और यूनिफॉर्म फिर से कैसे खरीदूंगा।’’
भाषा जोहेब सुरेश
सुरेश

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