नयी दिल्ली, 15 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की जम्मू पीठ के कामकाज में पेश आने वाली मुश्किलों का संज्ञान लेते हुए सोमवार को केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को उसे (कैट की जम्मू पीठ को) एक महीने के भीतर उचित जगह उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने अचल शर्मा नामक व्यक्ति की ओर से 2020 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। याचिका में कैट की जम्मू पीठ के कामकाज के लिए पर्याप्त जगह और कर्मचारी न होने का आरोप लगाया गया था।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की पीठ ने कहा कि इस गति से चलने पर जम्मू में कैट के कामकाज के लिए अलग स्थान सुरक्षित करने में वर्षों लग जाएंगे।
पीठ ने विभिन्न दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा, “भारत सरकार और केंद्र-शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के प्रशासन को निर्देश दिया जाता है कि वे (कैट के कामकाज के लिए) जल्द से जल्द, अधिकतम एक महीने के भीतर, उचित जगह उपलब्ध कराएं।”
उसने इस बात पर गौर किया कि कैट के संचालन के लिए एक निजी इमारत में जगह हासिल करने का पिछला प्रयास मुश्किलों में फंस गया था, क्योंकि उस जगह के मलिकाना हक को लेकर विवाद था।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा कि प्राधिकारियों ने जम्मू विकास प्राधिकरण के स्वामित्व वाली एक इमारत की पहचान कर ली है, जहां कैट को स्थानांतरित किया जा सकता है।
पीठ ने दलीलों पर संज्ञान लिया और इस संबंध में तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया। उसने जम्मू में कैट के लिए एक स्थायी भवन के निर्माण की भी वकालत की।
पीठ ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को जम्मू में एक स्थायी भवन के निर्माण के लिए उचित जगह की पहचान करने और इस संबंध में तीन महीने के भीतर कदम उठाने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से फरवरी 2026 के अंत तक इस मुद्दे पर एक वस्तुस्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को भी कहा।
इससे पहले, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा था कि सरकार के लिए न्यायिक और अर्ध-न्यायिक निकायों में आउटसोर्स किए गए कर्मचारियों को तैनात न करना विवेकपूर्ण होगा।
उन्होंने कहा था, “यह अत्यंत वांछनीय है कि न्यायाधिकरण के लिए उचित न्यायालय कक्षों, चैंबर, कार्यालयों और कर्मचारियों के साथ एक स्थायी भवन हो। न्यायिक और अर्ध-न्यायिक निकायों में आउटसोर्स किए गए कर्मचारियों को तैनात करना विवेकपूर्ण नहीं हो सकता है, जहां अभिलेखों का रखरखाव, गोपनीयता और उन्हें अद्यतन करना दिन-प्रतिदिन की चुनौतियां हैं।”
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि सरकार आउटसोर्सिंग के माध्यम से रिक्त पदों को भर रही है।
भाषा पारुल प्रशांत
प्रशांत