रिहा कराये गये बंधुआ मजदूरों को वित्तीय सहयोग के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा: एनएचआरसी

रिहा कराये गये बंधुआ मजदूरों को वित्तीय सहयोग के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा: एनएचआरसी

रिहा कराये गये बंधुआ मजदूरों को वित्तीय सहयोग के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा: एनएचआरसी
Modified Date: August 30, 2024 / 05:37 pm IST
Published Date: August 30, 2024 5:37 pm IST

नयी दिल्ली, 30 अगस्त (भाषा) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह बचाए गए बंधुआ मजदूरों को तत्काल वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के मुद्दे को हल करने के लिए सभी हितधारकों के साथ चर्चा करेगा और एक ‘ठोस प्रस्ताव’ लेकर आएगा।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ बंधुआ मजदूरों के रूप में तस्करी किए गए लोगों के मौलिक अधिकारों को लागू करने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

इस मामले की सुनवाई के दौरान उन मजदूरों को तत्काल वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का मुद्दा उठा।

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याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एच. एस. फुल्का ने कहा कि ऐसे 10 प्रतिशत मजदूरों को भी वित्तीय सहायता या मुआवजा नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता संगठन ने करीब 11,000 बच्चों को बचाया है, लेकिन उनमें से केवल 719 को ही वित्तीय सहायता दी गई।

एनएचआरसी की वकील ने कहा कि वह हितधारकों के साथ बैठकर इस मुद्दे पर चर्चा कर सकती हैं।

पीठ ने एनएचआरसी की वकील से कहा कि वे याचिकाकर्ताओं और अन्य हितधारकों के साथ बातचीत कर तौर-तरीकों को अंतिम रूप दें।

पीठ ने कहा, ‘‘एनएचआरसी की वकील ने कहा कि वह सभी हितधारकों के साथ चर्चा करेंगी और एक ठोस प्रस्ताव लेकर आएंगी, ताकि बचाए गए बंधुआ मजदूरों को तत्काल वित्तीय सहायता पहुंचाने के मुद्दे को हल किया जा सके।’’

पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए चार सप्ताह बाद की तारीख निर्धारित की।

शीर्ष अदालत ने जुलाई 2022 में याचिका पर सुनवाई को लेकर सहमति जताई थी और याचिका पर केंद्र, एनएचआरसी और कुछ राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से जवाब मांगा था।

याचिकाकर्ताओं में से एक ने कहा है कि उसे और कुछ अन्य बंधुआ मजदूरों को 28 फरवरी, 2019 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के एक ईंट भट्ठे से बचाया गया था। उन्हें बिहार के गया जिला स्थित उनके पैतृक गांव से एक गैर-पंजीकृत ठेकेदार द्वारा तस्करी कर लाया गया था।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें और उनके साथी श्रमिकों को न्यूनतम वैधानिक मजदूरी के भुगतान के बिना काम करने के लिए मजबूर किया गया तथा उनके आवागमन एवं रोजगार के मौलिक अधिकारों पर गंभीर रूप से अंकुश लगाया गया।

भाषा

सुरेश नरेश

नरेश


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