‘चैटजीपीटी’ से भावनाएं साझा कर रहें हैं किशोर, मनोचिकित्सकों ने जताई चिंता
'चैटजीपीटी' से भावनाएं साझा कर रहें हैं किशोर, मनोचिकित्सकों ने जताई चिंता
(अपर्णा बोस)
नयी दिल्ली, तीन अगस्त (भाषा) आजकल के किशोर अपनी परेशानियां और मन की बातें चैटजीपीटी जैसे कृत्रिम मेधा (एआई) चैटबॉट्स से साझा कर रहे हैं जिसे लेकर शिक्षकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों में गंभीर चिंता व्यक्त की है।
विशेषज्ञों का कहना है कि किशोर इसे एक ‘सुरक्षित जगह’ मान रहे हैं, लेकिन यह असल में एक खतरनाक आदत बन रही है। इससे बच्चों में हर बात पर दूसरों की तारीफ पाने की चाहत बढ़ रही है और वे असली जीवन में बातचीत करना भूल रहे हैं।
यह डिजिटल मदद सिर्फ एक धोखा है, क्योंकि ये चैटबॉट्स सिर्फ वही कहते हैं जो आप सुनना चाहते हैं। इससे बच्चों में गलत सोच विकसित हो सकती है और वे दूसरों से घुलना-मिलना नहीं सीख पाते।
एक स्कूल की प्रधानाचार्य सुधा आचार्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘स्कूल एक ऐसी जगह है जहां किशोर आपस में मिलते हैं, बात करते हैं और सामाजिक और भावनात्मक चीज़ें सीखते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘आजकल बच्चों में एक आदत बन गई है… उन्हें लगता है कि जब वे अपने फोन के साथ बैठे होते हैं, तो वे पूरी तरह से अकेले और सुरक्षित होते हैं। लेकिन सच यह है कि चैटजीपीटी जैसे चैटबॉट्स एक बड़े सिस्टम से संचालित होते हैं, और जो भी बात उनसे की जाती है, वह पूरी तरह से निजी नहीं होती – वह जानकारी बाहर भी जा सकती है।’
मनोचिकित्सक डॉ. लोकेश सिंह शेखावत ने भी बताया कि एआई चैटबॉट जानबूझकर ऐसा बनाया गया है कि वह आपसे खूब बातें करे। जब कोई बच्चा एआई को अपनी कोई गलत सोच बताता है, तो एआई उसे सही ठहराता है। बार-बार ऐसा होने पर बच्चा उस गलत सोच को ही सच मान लेता है।
भाषा योगेश शोभना
शोभना

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